

कांग्रेस जिलाध्यक्ष बनते ही मनीष मक्कासर को बड़े आंदोलन में कूदना पड़ा। वे वैसे भी जनता के बीच रहने वाले नेता माने जाते हैं। टिब्बी में एथनॉल प्लांट विवाद, किसानों-पुलिस की झड़प और समाधान की संभावनाओं पर ‘भटनेर पोस्ट डॉट कॉम ने मनीष मक्कासर से बात की। प्रस्तुत हैं संपादित अंश

प्रशासन कहता है कि महापंचायत की अनुमति दी थी, लेकिन निर्माणाधीन प्लांट की ओर मार्च की नहीं। आपकी राय?
-प्रशासन क्या कह रहा है, इसे छोड़िए। असल सवाल यह है कि अगर प्रशासन सजग होता तो यह नौबत ही क्यों आती? महापंचायत में तीन घंटे इंतजार किया गया, बार-बार बातचीत की कोशिश हुई। मांग बहुत साधारण थी, प्लांट का निर्माण रोककर निर्णायक बातचीत की जाए। लेकिन प्रशासन हिला तक नहीं। हजारों लोगों में गुस्सा स्वाभाविक था और अंत में भीड़ प्लांट की ओर बढ़ गई। अब पुलिस ने क्या किया? रोकने की आधी-अधूरी कोशिश भी नहीं। सरकार खुद चाहती थी कि हालात बिगड़ें और दोष किसान संघर्ष समिति पर मढ़ दिया जाए। यह पूरा घटनाक्रम सरकार की नाकामी दिखाता है।

बीजेपी और राज्य सरकार इस हिंसा के लिए कांग्रेस और माकपा को जिम्मेदार ठहरा रही है। आप क्या कहते हैं?
-बीजेपी का स्वभाव आप जानते हैं। जहां मौका दिखे, राजनीति घुसेड़ दो। जबकि यह पूरी तरह जनता का आंदोलन है। लोग खुद नहीं चाहते कि यह प्लांट यहां बने। हम तो सिर्फ जनभावनाओं के अनुरूप खड़े हैं। आज बीजेपी सत्ता में है, इसलिए ऐसी बातें कर रही है। कल विपक्ष में होती तो वही नेता हमारे साथ सड़क पर होते। यह कांग्रेस-बीजेपी का मसला नहीं, जनता की जिंदगी का मसला है।

सरकार कहती है, फैसला गहलोत सरकार का था, हम बस उसे लागू कर रहे हैं। क्या उस वक्त विसंगतियों की तरफ ध्यान नहीं गया?
-एमओयू के वक्त हर चीज़ विस्तार से तय नहीं होती। यह बहाना बनाकर बीजेपी बच नहीं सकती। जनता नासमझ नहीं है, वह सब जानती है। जिन योजनाओं को गहलोत सरकार ने शुरू किया और बीजेपी ने आते ही दो दर्जन से ज्यादा बंद कर दीं, उन्हें बंद करने में तो बहुत एक्टिव थे। मगर प्लांट को पुलिस के दम पर बनवाने में क्यों अड़े हुए हैं? जनता की भावनाओं को सुनने में तकलीफ क्या है?

स्पिनिंग मिल बंद हो गई, अब प्लांट का विरोध। रोजगार कैसे बढ़ेगा?
-स्पिनिंग मिल बंद किसने की? वसुंधरा सरकार ने। उस वक्त भी हमने संघर्ष किया, कांग्रेस सरकार ने कोशिशें कीं, लेकिन सरकार बदलने से काम रुका। हम भी चाहते हैं कि क्षेत्र में रोजगार बढ़े, उद्योग लगे। लेकिन ऐसे उद्योग लगें जो लोगों को बीमार न करें। यह इलाका पहले ही ‘कैंसर बेल्ट’ कहलाता है। एथनॉल प्लांट का दूषित पानी जमीन में जाएगा, उसी से खेतों की सिंचाई होगी, वही पानी लोग पिएंगे, यह तो मौत को निमंत्रण देने जैसा है। सरकार चाहे तो इस उद्योग को रेगिस्तानी इलाके में लगाए, जहां आबादी न हो। या यहां पर शुगर मिल लगाए। हम सालों से मांग कर रहे हैं, पर सुनने वाला कोई नहीं।

प्लांट भी लगे और प्रदूषण भी न हो, क्या बीच का रास्ता है?
-यह जिम्मेदारी सरकार की है। जनता चीख रही है, लेकिन मंत्रियों को यहां आने की फुर्सत नहीं। प्रभारी मंत्री जयपुर बैठकर बयान दे रहे हैं, मगर जनता से संवाद करने का समय नहीं। सरकार प्रशासन और पुलिस को आगे कर डराने-धमकाने में लगी है। केस दर्ज कर रही है। पर यहां के लोग डरने वालों में से नहीं। यही इलाका है जहां बड़े आंदोलन हुए और सरकारों को झुकना पड़ा। हम दादा हरिराम चौधरी और शोपत सिंह की परंपरा से आते हैं, संघर्ष हमारी रगों में है। जनता पर जुल्म होगा तो मुकाबला होगा। सुलह का रास्ता सरकार के हाथ में है, वह जनता को साथ लेना चाहती है या सत्ता के नशे में मनमानी करना चाहती है, यह उसे तय करना है। हम सिर्फ अपने संदेहों और खतरे का समाधान चाहते हैं।



