





भटनेर पोस्ट ब्यूरो.
टिब्बी इलाके का राठीखेड़ा गांव बुधवार दोपहर अचानक रणभूमि में बदल गया। 15 महीनों से एथनॉल प्लांट का हो रहा विरोध उस वक्त फट पड़ा जब किसान ट्रैक्टरों के काफिले के साथ निर्माणाधीन एथेनॉल फैक्ट्री की चारदीवारी की तरफ बढ़े। भीड़ भड़कने की रफ्तार ऐसी थी कि पुलिस की शुरुआती रोकथाम हवा हो गई। दीवारें टूटीं, आंसूगैस चली, ट्रैक्टर गर्जे और लपटों ने पुलिस वाहनों को अपनी चपेट में ले लिया। प्रशासन ने पूरे टिब्बी कस्बे और आसपास के गांवों में इंटरनेट तक काट दिया, हालात बताने के लिए इतना काफी था कि मामला अब सिर्फ आंदोलन नहीं रहा, सीधे खुले टकराव में बदल चुका है।
सुबह किसान एसडीएम कार्यालय के बाहर महापंचायत में जमा हुए थे। कांग्रेस और माकपा सहित कई विपक्षी दल पहले ही समर्थन दे चुके थे, इसलिए भीड़ में पूरे इलाके का प्रतिनिधित्व दिख रहा था। शाम 4 बजे सभा खत्म हुई और भीड़ अचानक फैक्ट्री की ओर बढ़ चली। इसी ‘कूच’ ने पूरे सिस्टम की धड़कन बढ़ा दी।

फैक्ट्री पर पहुंचते ही किसानों ने ट्रैक्टरों से दीवार तोड़ी और परिसर में घुस गए। पुलिस ने आंसूगैस के गोले दागकर भीड़ रोकने की कोशिश की, मगर गुस्से का ताप अधिक था। किसानों ने पुलिस की तीन गाड़ियों में तोड़फोड़ के बाद आग लगा दी। देखते ही देखते हालात इतने बिगड़े कि पुलिस को पीछे हटना पड़ा। कई वाहनों में नुकसान हुआ और मौके पर अफरा-तफरी फैल गई। इस भिड़ंत में किसानों के समर्थन में पहुंचे एक कांग्रेस विधायक अभिमन्यु पूनिया भी घायल हुए। घायल विधायक का जिक्र स्थानीय राजनीति में नए तनाव की ओर इशारा करता है, क्योंकि जिस आंदोलन को विपक्ष बैक कर रहा था, उसे अब हिंसक मोड़ मिल चुका है।

सभा में मौजूद श्रीगंगानगर सांसद कुलदीप इंदौरा ने कहा कि सरकार जनता की भावनाएं समझने को तैयार नहीं है। उनके मुताबिक, एथेनॉल प्लांट बनने से इलाके में प्रदूषण बढ़ने की आशंका है, जब कि इंदिरा गांधी नहर का प्रदूषित पानी पहले ही किसानों के लिए बड़ी मुसीबत बना हुआ है। इंदौरा ने बताया कि वह यह मुद्दा लोकसभा में उठाना चाह रहे हैं, लेकिन बोलने का मौक़ा तक नहीं मिल पा रहा। यह बयान साफ संकेत देता है कि राजनीतिक तकरार आने वाले दिनों में और तेज़ होगी।

18 नवंबर से ही टिब्बी क्षेत्र में धारा निषेधाज्ञा लागू है। बुधवार को भी पुलिस के आला अधिकारियों के साथ करीब 500 से अधिक पुलिसकर्मी मौजूद थे। एक एएसपी, दो डीएसपी और कई थानों की फोर्स तैनात होने के बावजूद भीड़ बेकाबू हो गई। सुरक्षा के लिए होमगार्ड की दो बटालियन लगातार साइट पर मौजूद हैं, क्योंकि फैक्ट्री को लेकर प्रशासन पहले दिन से तनाव को भांप रहा था।

करीब 450 करोड़ की लागत से बन रही यह एथेनॉल फैक्ट्री एशिया की सबसे बड़ी बताई जा रही है। ग्रामीणों का आरोप है कि प्लांट से रासायनिक प्रदूषण बढ़ेगा, जमीन और पानी पर असर पड़ेगा और फसलें खतरे में आ जाएंगी। किसानों ने लंबे समय से धरना दे रखा था, जिसे हाल ही में हटवाकर प्रशासन ने दीवार निर्माण पूरा करवाया। यही कदम आग में घी साबित हुआ।
दिलचस्प यह भी रहा कि पुलिस सुरक्षा में दीवार और निर्माण चलता रहा, जबकि किसान खुद को दरकिनार और अनसुना महसूस करते रहे। दोनों पक्षों के बीच संवाद की कमी अब पूरी तरह विस्फोट का रूप ले चुकी है।

किसानों को विपक्ष का समर्थन मिल रहा है। प्रशासन सख्त है। फैक्ट्री निर्माण भी तेजी से आगे बढ़ रहा है। तीनों पक्ष अपनी-अपनी जमीन पर अड़े हुए हैं। यह गतिरोध आने वाले दिनों में और उग्र होगा या बातचीत की कोशिशें शुरू होंगी, अभी कहना मुश्किल है। फिलहाल इतना तय है कि टिब्बी आंदोलन अब महज पर्यावरण की चिंता नहीं रहा। यह स्थानीय असंतोष, प्रशासनिक सख्ती, राजनीतिक जुड़ाव और किसानों के गुस्से की संयुक्त चिंगारी बन चुका है। राजस्थान की धरती ऐसे आंदोलनों की गवाह रही है, और यह घटना उन्हें एक और उदाहरण दे गई है।


