



डॉ. संतोष राजपुरोहित.
भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा रेपो रेट में की गई हालिया कटौती ने देश के बैंकिंग क्षेत्र और ऋण बाज़ार में एक नई हलचल पैदा कर दी है। रेपो रेट वह प्रमुख नीति दर है जिस पर आरबीआई वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालीन धन उपलब्ध कराता है। जब यह दर घटती है तो बैंकों के लिए उधार लेना सस्ता हो जाता है, और वे आगे ग्राहकों को भी कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराने लगते हैं। इसी श्रृंखला में छह बड़े बैंकों पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, यूनियन बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, आईडीबीआई बैंक और बैंक ऑफ महाराष्ट्र ने गृह ऋण की ब्याज दरों में 0.25 फीसद तक की कमी की घोषणा की है। इसके परिणामस्वरूप होम लोन की न्यूनतम दरें 7.10 फीसद से 7.45 फीसद के बीच आ गई हैं, जिससे लाखों गृहस्वामित्व चाहने वालों को बड़ी राहत मिलने की उम्मीद है।

रेपो रेट में हुई 0.25 फीसद की कमी का प्रभाव विशेष रूप से उन ग्राहकों पर दिखाई देगा जो 20 से 30 वर्ष की लंबी अवधि वाले होम लोन लेते हैं। ब्याज दर में मामूली कटौती भी मासिक किश्त (ईएमआई) में उल्लेखनीय कमी ला देती है। उदाहरण के लिए, 30 लाख के होम लोन पर 0.25 फीसद ब्याज दर कम होने से ग्राहक की कुल देनदारी लगभग 1.12 लाख रुपये कम हो सकती है। यही कारण है कि बैंक भी ब्याज दर में कटौती का लाभ ग्राहकों तक तेज़ी से पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि प्रतिस्पर्धी माहौल में अपनी पकड़ मजबूत बनाए रख सकें।

बैंकों द्वारा घोषित नई दरें न केवल उधारकर्ताओं के लिए राहत लेकर आई हैं, बल्कि आवासीय क्षेत्र में मांग को भी गति देने की क्षमता रखती हैं। रीयल एस्टेट सेक्टर लंबे समय से मंदी और मांग की कमी से जूझ रहा है। कम ब्याज दरें आवास खरीदने को आकर्षक बनाती हैं, जिससे निर्माण गतिविधियों में तेज़ी आने की संभावना बढ़ जाती है। विशेषज्ञों का मानना है कि वर्तमान आर्थिक परिदृश्य में रेपो रेट में कटौती का यह फैसला उपभोक्ता विश्वास बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

हालाँकि, विशेषज्ञ यह भी संकेत दे रहे हैं कि रेपो रेट में कटौती का यह दौर संभवतः लंबा न चले। यदि आने वाले महीनों में मुद्रास्फीति दबाव बढ़ता है, तो आरबीआई फिर से तटस्थ या कठोर रुख अपना सकता है। बावजूद इसके, अभी तक के संकेत दर्शाते हैं कि बैंकिंग सेक्टर की ऋण वितरण नीति कुछ समय तक नरम बनी रह सकती है। घर खरीदने की सोच रहे मध्यवर्गीय परिवारों के लिए यह समय अवसरपूर्ण माना जा सकता है।

कुछ बैंक ऐसे भी हैं जिन्होंने नई दरें अगले कुछ दिनों में लागू करने की घोषणा की है, क्योंकि बेंचमार्क लिंक्ड लेंडिंग रेट (बीएलएलआर) को समायोजित करने की प्रक्रिया में समय लगता है। लेकिन संकेत साफ हैं, आने वाले हफ्तों में अधिकतर बैंकों की दरों में और नरमी देखने को मिल सकती है। वित्त विशेषज्ञों का मानना है कि यदि 7.10 फीसद की नई शुरुआती दरें स्थिर रहती हैं, तो आने वाले महीनों में होम लोन और भी सस्ते हो सकते हैं। कारण यह है कि बैंक अब केवल आरबीआई के फैसलों पर नहीं, बल्कि प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए भी ब्याज दरों में लचीलापन ला रहे हैं। डिजिटल बैंकिंग और तेजी से बढ़ते फिनटेक प्लेटफार्मों ने इस प्रतिस्पर्धा को और तेज़ किया है, जिससे ग्राहकों को लाभ मिल रहा है।

कुल मिलाकर देखा जाए तो रेपो रेट में कटौती ने आम उपभोक्ताओं के लिए राहत का दरवाज़ा खोल दिया है। होम लोन की सस्ती दरें न केवल व्यक्तिगत वित्तीय बोझ को कम करती हैं, बल्कि अर्थव्यवस्था में मांग और निवेश को भी प्रोत्साहित करती हैं। आने वाले महीनों में यदि आर्थिक परिस्थितियाँ अनुकूल रहीं, तो गृह ऋण बाज़ार में और अधिक सुगमता तथा पारदर्शिता देखने को मिल सकती है। यह दौर बैंकिंग क्षेत्र की सक्रिय प्रतिस्पर्धा और उपभोक्ताओं के प्रति बढ़ती संवेदनशीलता का प्रतीक है, जो देश की आर्थिक प्रगति के लिए सकारात्मक संकेत है।
-लेखक भारतीय आर्थिक परिषद के सदस्य हैं



