




डॉ. अर्चना गोदारा.
अभी कुछ दिन पहले एक मैरिज पैलेस के सामने एक होल्डिंग लगा हुआ देखा। ‘फेक मैरिज विद डांडिया नाइट’। देख कर बड़ा अजीब लगा परंतु आज के बदलते समय में यह दिलचस्प और चुटीला ट्रेंड युवाओं के बीच तेजी से उभर रहा है, “फेक वेडिंग”। नाम चाहे जितना अजीब लगे, लेकिन इसका असल उद्देश्य बेहद सरल और आधुनिक मानसिकता का परिचायक है। लोग अब अपनी खुशी के लिए परंपराओं का इंतज़ार नहीं करना चाहते, वे अवसरों को खुद गढ़ लेना चाहते हैं। ‘फेक वेडिंग’ दरअसल एक ऐसा आयोजन है जिसमें बिना असली शादी किए, शादी जैसे सभी रस्मों का आनंद लिया जाता है। न मेहंदी का दबाव, न रिश्तेदारी का बोझ और न ही किसी सामाजिक उम्मीद का तनाव। सिर्फ मस्ती, संगीत, हंसी, कैमरा और एक ऐसा अनुभव जिसे लोग बाद में यादों की एल्बम में संजो सकें।

पिछले एक वर्ष में दिल्ली, मुंबई, जयपुर और बेंगलुरु जैसे शहरों में इस तरह के आयोजनों की बुकिंग में 40 प्रतिशत से अधिक बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इवेंट मैनेजमेंट कंपनियाँ खास पैकेज लेकर खुद बाजार में उतर आई हैं, डिज़ाइनर परिधान, थीम डेकोरेशन, डांस एंट्री, बारात, फोटोशूट और यहां तक कि कस्टमाइज्ड वेडिंग प्रतिज्ञा भी। यह पूरा आयोजन एक दिन का भी हो सकता है और किसी फिल्मी सेट की तरह दो से तीन दिनों तक चलने वाला भी।

आप सोच रहे हैं कि यह चलन क्यों बढ़ रहा है, तो इसका जवाब वर्तमान सामाजिक और भावनात्मक संरचना में छिपा है।
आज की पीढ़ी इंस्टाग्राम और रील्स के दौर में पली-बढ़ी है। उन्हें अपने जीवन में ऐसे अनुभव चाहिए जो सामान्य से अलग हों और जिन्हें वे कैमरे में कैद कर सकें। शादी हमेशा से भारतीय समाज में एक बड़े, रंगीन और उत्सवपूर्ण मौके के रूप में देखी जाती है। लेकिन असली शादी की जिम्मेदारियां, खर्चे, रिश्तेदारी की औपचारिकताएँ और बाध्यताएँ कई लोगों के लिए तनावभरा अनुभव बन जाती हैं।

ऐसे में फेक वेडिंग एक तरह से ‘जॉय विदाउट बर्डन’ का विकल्प बनकर उभर रही है, शादी की रौनक भी, लेकिन बिना किसी बंधन के। कई युवा इससे इसलिए भी जुड़ रहे हैं क्योंकि वे शादी के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं, लेकिन उस माहौल की खुशी महसूस करना चाहते हैं। कुछ लोग इसे जन्मदिन, एनिवर्सरी या फ्रेंडशिप डे की तरह मनाते हैं, तो कुछ इसे एक ऐसे दिन के रूप में देखते हैं जो उन्हें भीड़ से थोड़ा अलग और खास बना दे। सोशल मीडिया पर फेक वेडिंग के वीडियो और तस्वीरें लाखों व्यूज़ जुटा रही हैं। एक प्रसिद्ध डिजिटल इन्फ्लुएंसर के फेक वेडिंग फोटोशूट ने दो हफ्तों में बारह लाख से ज्यादा व्यूज़ हासिल किए। इससे प्रेरित होकर कई युवाओं ने पहली बार इस ट्रेंड को अपनाया और इसे अपने “हैप्पी डे” की तरह मनाया।
इस ट्रेंड के कुछ दिलचस्प किस्से भी लोगों का ध्यान खींच रहे हैं।

जयपुर की एक 28 वर्षीय युवती ने अपने जन्मदिन पर अपनी बारात निकलवाई, जिसमें उसके दोस्त बैंड-बाजा के साथ नाचते हुए पहुँचे। उसका कहना था कि उसने जीवन में पहली बार महसूस किया कि खुशी को जबरन नहीं, बल्कि दिल से बनाया जा सकता है। दिल्ली का एक कपल जो लंबे समय से रिश्ते के द्वंद्व में था कि शादी करे या नहीं, उसने फेक वेडिंग कर ली। इस आयोजन के दौरान पैदा हुआ आत्मीयता और सहजता का भाव इतना गहरा निकला कि छह महीने बाद दोनों ने सचमुच के फेरे भी ले लिए।

कई इवेंट कंपनियाँ बताती हैं कि महीने में औसतन पाँच से दस फेक वेडिंग की बुकिंग अब सामान्य हो चुकी है। इस उद्योग में आने वाले दो वर्षों में 100 से 150 करोड़ रुपये तक की संभावित वृद्धि का अनुमान लगाया जा रहा है, जो यह दर्शाता है कि यह सिर्फ एक हल्का-फुल्का मज़ाकिया ट्रेंड नहीं, बल्कि एक संभावित बिज़नेस मॉडल भी बन चुका है।

सामाजिक दृष्टि से देखा जाए तो फेक वेडिंग भारतीय परंपराओं का विरोध नहीं, बल्कि समय के साथ विकसित होती संवेदनाओं और मानसिकताओं का प्रतिबिंब है। परंपराएँ हमेशा बदलते समाज के साथ रूपांतरित होती हैं। पहले विवाह जीवनभर का निर्णय माना जाता था, लेकिन आज की पीढ़ी के लिए विवाह केवल रिश्तों का कानूनी बंधन नहीं, बल्कि एक भावनात्मक और व्यक्तिगत निर्णय है। फेक वेडिंग उसी नई सोच का हिस्सा है जिसमें व्यक्ति खुद तय करता है कि वह अपनी खुशी किस तरह मनाना चाहता है। यह उस विचार का भी विस्तार है कि जीवन में बड़े अवसरों का इंतज़ार करने से बेहतर है कि छोटे-छोटे मौकों को भी बड़ा बना लिया जाए। ऐसे आयोजन इस बात की पुष्टि करते हैं कि आज का युवा उत्सव की भाषा को नई दिशा दे रहा है, जहाँ रस्मों से ज़्यादा महत्व अनुभवों का है, और नियमों से अधिक जगह भावनाओं की है।

अंततः, फेक वेडिंग इस पीढ़ी की उस मानसिकता का प्रतीक बनकर सामने आई है जहाँ खुशी को परिभाषित करने का अधिकार पूरी तरह व्यक्ति के पास है। यह एक ऐसा उत्सव है जो दिखाता है कि आधुनिक समाज में लोग खुशियों को परंपराओं की कैद में नहीं रखते, बल्कि उन्हें अपनी तरह से जीना चाहते हैं। चाहे कोई इसे मनोरंजन माने, रचनात्मक प्रयोग कहे या सामाजिक बदलाव की नई लहर, इतना तो तय है कि फेक वेडिंग सिर्फ एक आयोजन नहीं, बल्कि आज की पीढ़ी की आज़ाद सोच और नए अंदाज़ की जीती-जागती तस्वीर है।
ढूंढ लो खुशियां, जहां मिल जाए। वरना निराशा और अकेलापन तो, जिंदगी का हिस्सा है ही।
-लेखिका राजकीय एनएमपीजी कॉलेज हनुमानगढ़ में सहायक आचार्य हैं


