



दिनेश दाधीच.
हनुमानगढ़ की मिट्टी हमेशा से तेज दिमाग और मज़बूत हौसलों को जन्म देती आई है। इसी ज़मीन पर खड़ा हुआ हनुमानगढ़ बार संघ सिर्फ अधिवक्ताओं का संगठन नहीं, बल्कि जिले के न्यायिक सफर का धड़कता हुआ इतिहास है। इसकी कहानी कई दशकों की मेहनत, संघर्ष, नेतृत्व और बदलाव की कहानी है, वही कहानी जिसे आज याद करना किसी पुरानी किताब के पन्ने पलटने जैसा सुख देता है।

जिले के गठन के बाद शुरू हुए बार संघ के चुनाव आज 32वें पड़ाव पर पहुँचे हैं। ये 32 साल किसी कैलेंडर की तारीखें नहीं, बल्कि वह दौड़ हैं जिसमें हर पीढ़ी ने अपनी-अपनी गति से न्याय व्यवस्था को आगे बढ़ाया। बार के इन तीन दशकों में 31 अध्यक्षों ने अपनी सेवा दी। हर अध्यक्ष ने संस्था को नए आयाम दिए, किसी ने अनुशासन मजबूत किया, किसी ने अधिवक्ताओं की आवाज़ को ताकत दी, किसी ने सुविधाओं और न्यायिक सहयोग की नींव को मजबूत किया। यह निरंतर चलने वाली मशाल की दौड़ है, जहाँ हर ध्वजवाहक ने बार संघ को वह दिशा दी जिस पर आज हनुमानगढ़ गर्व करता है।

यहां के अधिवक्ताओं की एक खास पहचान है, ज्ञान, तर्क और कार्यशैली में ऐसा तेवर कि राजस्थान के किसी भी न्यायिक अधिकारी के सामने उनका नाम लिया जाए तो सम्मान झलक उठता है। सिविल हो, फौजदारी हो या राजस्व, हनुमानगढ़ के वकील अदालत में तर्क ऐसे रखते हैं जैसे कोई अनुभवी शतरंज खिलाड़ी अपनी चालें चलता है। सूझबूझ, अनुशासन और अपनी परंपरा की गरिमा के साथ।

बार संघ की सबसे बड़ी पूंजी इसका वो योगदान है जिसने न सिर्फ जिले का, बल्कि राज्य का नाम रोशन किया। इस संघ के अधिवक्ताओं में से कई उच्च न्यायिक पदों पर पहुँचे। अमरचंद सिंघल सबसे पहले अधिवक्ता थे जो सीधे जिला एवं सत्र न्यायाधीश बने। उनके बाद सुरेंद्र मोहन शर्मा, अमित कड़वासरा और अनुभव सिडाना जैसे नाम इसी परंपरा के मजबूत स्तंभ बने। यह उपलब्धि सिर्फ व्यक्तिगत सफलता नहीं, बल्कि पूरे बार संघ की सामूहिक प्रतिष्ठा का प्रमाण है। इसके अलावा अनेक अधिवक्ता न्यायिक मजिस्ट्रेट के रूप में राजस्थान के विभिन्न जिलों में सेवा दे रहे हैं। इनके फैसलों में हनुमानगढ़ की सीख और तेजस्विता साफ झलकती है।

हनुमानगढ़ बार की एक खूबी इसकी आपसी एकजुटता रही है। वकालत में विवाद कोई नई बात नहीं, पर जब भी किसी साथी अधिवक्ता पर संकट आया, पूरा बार संघ एक आवाज़ में खड़ा हुआ। यही भावना एक संस्था को परिवार बनाती है, और यही वह ताकत है जिसने हनुमानगढ़ बार संघ की नींव को हमेशा दृढ़ रखा।

समय बदला, तो वकालत का चेहरा भी बदला। पुरानी पीढ़ी टाइपराइटर की खटखटाहट में दलीलें तैयार करती थी। कानून की मोटी किताबें, बाजू में नीली कलम और आँखों पर धूप में तपे चश्मे, यह दृश्य कभी हर अधिवक्ता की पहचान था। लेकिन समय किसी का इंतजार नहीं करता। तकनीक आई, कंप्यूटर आए, ई-लाइब्रेरी ने किताबों की जगह स्क्रीन ले ली। आज की पीढ़ी हाथ में फाइल कम, की-बोर्ड और डिजिटल केस डायरी ज्यादा लिए नजर आती है। अदालतों की कार्यवाही ऑनलाइन दस्तावेजों से चल रही है। बदलाव की इस धारा को हनुमानगढ़ बार संघ ने सिर्फ स्वीकार ही नहीं किया, बल्कि खुद को उसके अनुरूप ढालकर आगे बढ़ाया।

इस पूरी यात्रा में न्यायिक प्रशासन, पुलिस प्रशासन और जिला प्रशासन का सहयोग भी मजबूत कड़ी रहा। हनुमानगढ़ के अधिवक्ता सिर्फ अदालत के भीतर की लड़ाई नहीं लड़ते, वे सामाजिक मुद्दों पर भी समय-समय पर प्रभावशाली भूमिका निभाते रहे हैं। चाहे किसी पीड़ित का साथ देना हो, किसी अन्याय के खिलाफ एकजुट होना हो या समाज में जागरूकता लानी होकृबार संघ हमेशा सक्रिय रहा।

आज जब 32वें चुनाव का समय सामने है, हनुमानगढ़ बार संघ अपने अतीत को गर्व से देख सकता है और भविष्य की तैयारी भी उतनी ही गंभीरता से कर सकता है। नए कानून आए हैं, न्यायिक प्रक्रिया में आमूल-चूल परिवर्तन हुए हैं, तकनीक हर कदम पर आगे बढ़ रही है। यह समय अधिवक्ताओं से भी सीखने, बदलने और गति के साथ चलने की मांग करता है।

अधिवक्ता दिवस पर आत्ममंथन करें तो गौरवशाली अतीत, उस यात्रा का साक्षी है जिसमें मिट्टी की खुशबू लिए साधारण अधिवक्ता न्याय के मजबूत प्रहरी बन गए। समय आगे बढ़ता है, पीढ़ियाँ बदलती हैं, पर संस्थाएँ तभी जीवित रहती हैं जब वे अपने अतीत से सीखकर भविष्य की तैयारी करने का साहस रखती हैं। हनुमानगढ़ बार संघ ने यही किया है, और यही इसे आने वाले वर्षों में भी मजबूती से खड़ा रखेगा।
-लेखक विशिष्ट लोक अभियोजक रहे हैं


