



भटनेर पोस्ट डेस्क.
हनुमानगढ़ जंक्शन में हंस वाहिनी संगीत कला मंदिर द्वारा प्राचीन कला केंद्र, चंडीगढ़ के सौजन्य से आयोजित वार्षिक संगीत परीक्षा इस बार तकनीकी अनुशासन, गायकी की परंपरा और रपलंे-प्रधान शिक्षण की सुंदर मिसाल बनकर सामने आई। जिले के 65 परीक्षार्थियों ने शास्त्रीय, उप-शास्त्रीय, भावगीत, भजन और लाइट म्यूज़िक, इन सभी विधाओं में पाठ्यक्रमानुसार अपनी दक्षता प्रदर्शित की। कला मंदिर की संचालिका ममता अरोड़ा ने बताया कि परीक्षा संचालन के लिए फाजिल्का के वरिष्ठ संगीताचार्य और अनुभवी परफॉर्मर कृष्णा शांत जुनेजा आमंत्रित किए गए थे, जिनकी पहचान स्वर-सिद्धि, विलंबित गायन और लयकारी के गहन अध्ययन के लिए की जाती है।

परीक्षा उपरांत आयोजित संगीत गोष्ठी में विद्यार्थियों ने क्रमवार मंच-प्रस्तुतियों के माध्यम से अपने तकनीकी कौशल और सुर-बोध का परिचय दिया। पुण्या शर्मा ने अपनी प्रस्तुति ‘भगवान मेरी नैया’ में आलाप, स्थायी-अंतरा और भावाभिव्यक्ति का संतुलित संयोजन प्रस्तुत कर गोष्ठी का आरंभ उच्च स्तर पर किया। उनके बाद अभिषेक और ज्योति ने ‘बता मेरे यार सुदामा रे’ को मध्यम लय में संयत आवाज़ और भावपूर्ण अभिव्यक्ति के साथ गाया, जिससे प्रस्तुति में भक्ति और करुण रस दोनों का प्रभाव उभरा।

दीक्षा अरोड़ा ने ‘ए मेरे वतन के लोगों’ को सुर-संयम और वॉयस कंट्रोल के साथ पेश किया, जिसमें उनकी ऊँची पट्टी पर पकड़ और स्थिरता विशेष रूप से ध्यान खींचती रही। कश्वी और दिव्यांशी ने सरस्वती मंत्र का गायन स्वच्छ उच्चारण और शुद्ध स्वर-क्रम में किया, जो शुरुआती कलाकारों के लिए उल्लेखनीय मानक है। हिनल, प्रांजल और प्रवीण नवंस ने ‘मात पिता श्री गुरु चरणों में’ भजन को ताल-मात्रा की स्पष्ट समझ और संतुलित हार्माेनी के साथ प्रस्तुत किया।

वैलसी ने ‘मेरे घर राम आए हैं’ को थुमरी-आधारित भाव-शैली में स्वरित किया, जिसमें उनकी मींड और कंपकंपी का प्रयोग विशेष रूप से सराहा गया। हितेषी अरोड़ा ने लोक-भावनाओं से भरे ‘चौक पुरावो’ गीत में अपनी सहज आवाज़ और बोल-लय के मेल से माहौल को जीवंत कर दिया। काव्या सिंह की प्रस्तुति ‘मैं कभी बतलाता नहीं’ स्वर-संयोजन और वॉयस मॉड्यूलेशन का अच्छा उदाहरण रही।

निशा शर्मा ने मारवाड़ी भजन ‘आसरो बालाजी थारो’ को परंपरागत शैली की मौलिकता के साथ गाया, जिसमें उनके उच्चारण और लोक-छंद की पकड़ साफ दिखाई दी। इंद्रपाल सिंह ने ‘उड़ारियां’ में समकालीन धुन और क्लासिकल टच का मिश्रण पेश किया। गुरफतेह सिंह की प्रस्तुति ‘तू मेरा पिता तू है मेरा माता’ भाव-प्रधान गायकी और गूंजदार आवाज़ का सुंदर उदाहरण रही। स्पर्श बजाज ने ‘बड़े अच्छे लगते हैं’ गीत में सुर-पकड़ और ताल-सामंजस्य का प्रभावी प्रदर्शन किया। यशवी और नायाब ने ‘हे शारदे मां’ का समूह-गायन सुंदर समस्वरता और ताल-एकाग्रता के साथ किया। अमित जी ने ‘ज़िंदगी की यही रीत है’ को अनुभवी कलाकार की परिपक्वता और अभिव्यक्ति के साथ प्रस्तुत किया।

कार्यक्रम के अंत में कृष्णा शांत जुनेजा ने विद्यार्थियों के प्रदर्शन की प्रशंसा करते हुए कहा कि संगीत साधना का मार्ग है, जहाँ नियमित रियाज़, तन्मयता और गुरु-आदर ही कलाकार को आगे ले जाते हैं। संगीत साधक को साकार से निराकार की ओर ले जाने वाला माध्यम है, एक यात्रा, जिसे अनुशासन और विनम्रता से ही पार किया जा सकता है।’ उन्होंने विद्यार्थियों को रियाज में निरंतरता और माता-पिता व गुरुजनों के प्रति सम्मान बनाए रखने की प्रेरणा दी। कार्यक्रम में हेतराम स्वामी, गौरव शर्मा, सुनील कुमार और अमित कुमार उपस्थित रहे। हारमोनियम पर गुलशन अरोड़ा ने संगत की, जबकि तबले पर इवयान, जतिन महाजनी और लक्ष्य अरोड़ा ने तीनताल, दादरा और कहरवा में लय-निर्वहन किया। मंच संचालन पवन बजाज ने विधिवत और मधुर शैली में किया। गुलशन अरोड़ा ने बताया कि जिले में संगीत शिक्षा केवल जारी नहीं है, बल्कि अनुशासन, परंपरा और तकनीकी गुणवत्ताओं के साथ लगातार समृद्ध हो रही है, और यही प्रवाह स्थानीय संगीत संस्कृति को और मजबूत बनाता है।



