



भटनेर पोस्ट ब्यूरो.
कांग्रेस संगठन में बदलाव की सुगबुगाहट इन दिनों तेज हो चुकी है। पंजाब सहित कई राज्यों में नई नियुक्तियों के बाद अब निगाहें सीधे राजस्थान की ओर टिक गई हैं, और खासकर हनुमानगढ़ जिला राजनीतिक चर्चा का केंद्र बना हुआ है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के गलियारों से निकलकर आ रहे संकेत बताते हैं कि जिलाध्यक्षों की नई सूची का काउंटडाउन शुरू हो चुका है। कार्यकर्ताओं में उत्सुकता की खुराक दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, मानो हर फोन की घंटी उन्हें यही उम्मीद जगा रही हो कि शायद अब सूची जारी होने जा रही है।

हनुमानगढ़ में स्थिति थोड़ी उलझी हुई है। वरिष्ठ नेता अपने-अपने पसंदीदा चेहरों को आगे बढ़ाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। जिला अध्यक्ष की कुर्सी इस समय जितनी प्रतिष्ठा का प्रतीक है, उतनी ही गुटबाजी की कसौटी भी बन गई है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि संगठन इस बार सामाजिक समीकरण को विशेष महत्व देना चाहता है, और यही वजह है कि ज्यादातर फीडबैक ओबीसी और मूल ओबीसी वर्ग की ओर झुकता हुआ दिख रहा है। करीब 43 आवेदकों और अन्य कार्यकर्ताओं से मिले इनपुट के बाद पार्टी की मंशा लगभग साफ है, इस बार दांव उसी पर चलेगा, जो इन वर्गों का प्रतिनिधित्व करता हो।

इसी समीकरण के चलते जनरल और अल्पसंख्यक समुदाय के नामों को इस दौड़ से लगभग बाहर माना जा रहा है। सूत्रों के अनुसार, ओबीसी वर्ग से शबनम गोदारा, पवन गोदारा, मनीष गोदारा (मक्कासर) और दयाराम जाखड़ चर्चा में हैं। इन नामों पर काफी मंथन हो रहा है और जिला संगठन से जुड़े कई कार्यकर्ता इन्हें उपयुक्त विकल्प मानते हैं। दूसरी ओर, मूल ओबीसी वर्ग से श्रवण तंवर की दावेदारी को पार्टी के भीतर सबसे मजबूत माना जा रहा है। तंवर की संगठनात्मक पकड़ और जमीनी नेटवर्क को देखते हुए कई नेता उनका नाम पहले पायदान पर रखते दिखाई दे रहे हैं।

सूत्र यह भी बताते हैं कि पार्टी ऑब्ज़र्वर को जो फीडबैक प्राप्त हुआ है, वह भी इसी दिशा में इशारा करता है। संगठन को लगता है कि हनुमानगढ़ में सामाजिक समीकरण की दृष्टि से ओबीसी और मूल ओबीसी ही अधिक प्रभावी श्रेणी हैं, इसलिए नेतृत्व इन्हीं पर भरोसा करने की तैयारी में है। स्थानीय राजनीतिक तापमान भी इस संभावना को और मजबूती दे रहा है।

हालांकि तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है। मौजूदा जिलाध्यक्ष सुरेंद्र दादरी की कार्यशैली को लेकर पार्टी शीर्ष नेतृत्व संतुष्ट दिखाई देता है। दादरी को कुशल और संतुलित संगठक माना जाता है। जिला गठन के बाद वे हनुमानगढ़ के पहले ऐसे जिलाध्यक्ष हैं, जो सामान्य वर्ग से आते हैं, और उनकी यह यात्रा संगठनात्मक क्षमता के बल पर ही संभव हुई है। कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चलने की उनकी शैली ने उन्हें पार्टी में मजबूत पकड़ दी है। यही वजह है कि यदि उन्हें पद छोड़ना पड़ा तो पार्टी उन्हें पीसीसी में कोई महत्वपूर्ण भूमिका देकर एडजस्ट कर सकती है। दादरी की छवि संयमित और सबको साथ लेकर चलने वाले नेता की है, और ऐसे नेतृत्व की पार्टी में हमेशा जरूरत रहती है।

हालात यह संकेत दे रहे हैं कि कांग्रेस इस बार हनुमानगढ़ में सामाजिक प्रतिनिधित्व को प्राथमिकता देने के मूड में है। यह निर्णय जहाँ एक ओर ओबीसी और मूल ओबीसी वर्ग के कार्यकर्ताओं में उत्साह भर रहा है, वहीं अन्य दावेदारों में बेचैनी भी बढ़ा रहा है। जिला कांग्रेस कमेटी के दफ्तर से लेकर चाय की दुकानों तक, चर्चा अब इसी सवाल पर अटकी हुई है, आखिर वह कौन होगा, जिसे जिला नेतृत्व की कमान सौंपी जाएगी?

कुल मिलाकर, कांग्रेस में होने वाली नई नियुक्तियाँ न सिर्फ संगठन को नया रूप देंगी, बल्कि अगले चुनावी माहौल पर भी असर डालेंगी। हनुमानगढ़ की कुर्सी सिर्फ एक पद नहीं है; यह आने वाले समय में पार्टी की रणनीति, सामाजिक गणित और स्थानीय नेतृत्व के भविष्य का संकेत भी बनेगी। सूची कब आएगी, यह अभी कोई नहीं जानता, लेकिन इतना तय है कि जब आएगी, हनुमानगढ़ की राजनीति में हलचल जरूर मचाएगी। सबसे बड़ी बात यह कि पार्टी आलाकमान उपरोक्त नामों के इतर किसी और नाम पर मुहर लगाकर कार्यकर्ताओं को सरप्राइज तो नहीं देगा ?




