


गोपाल झा.
राजस्थान के मुख्य सचिव सुधांश पंत ने अचानक पद छोड़ दिया और अब दिल्ली रवाना हो रहे हैं। जी हां, वही पंत जिन पर भजनलाल शर्मा सरकार को पूरा भरोसा था, अब केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग में सचिव बनकर नई भूमिका निभाने जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि 13 महीने पहले रिटायरमेंट से पहले ही यह ‘दिल्ली बुलावा’ कुछ यूं आया कि पूरे प्रशासनिक गलियारे में कानाफूसी शुरू हो गई, कहीं कुछ तो पक रहा है!

1 जनवरी 2024 को मुख्य सचिव बने सुधांश पंत को एक सधे हुए, शांत और बेहद तकनीकी समझ रखने वाले अफसर के तौर पर जाना जाता है। लेकिन अब सवाल उठ रहा है कि आखिर, ऐसे अधिकारी ने अचानक राजस्थान को ‘नमस्कार’ क्यों कहा? कोई कहता है दिल्ली की हवा में उनका मन लग गया था, कोई कहता है जयपुर दरबार में उनकी नहीं चल रही थी। जो भी हो, अफसरशाही और सियासत के बीच की यह शतरंज की बाज़ी अब और दिलचस्प हो गई है।

दरअसल, पंत को मोदी सरकार का भरोसेमंद अफसर माना जाता है। कोरोना काल में उन्होंने स्वास्थ्य सचिव के तौर पर बढ़िया काम किया था, और पीएमओ में उनकी साख मजबूत है। कई जानकारों का कहना है कि यही वजह है कि उन्हें अचानक ‘दिल्ली बुलावा’ आया, सीधा ट्रांसफर ऑर्डर, बिना लंबा नोटिस, बिना किसी नाटकीय बयान के।

अब बात करें राजस्थान के माहौल की। जब से उनके दिल्ली जाने की खबर आई है, सचिवालय के गलियारों में तीन किस्म की चर्चाएं गूंज रही हैं, पहली, पंत की ‘पसंद के अफसरों’ की नहीं सुनी जा रही थी। जिन अफसरों को वे अहम जगहों पर लगवाना चाहते थे, उन्हें ठिकाना किसी और दिशा में मिल जाता था।

दूसरी, कई अहम फाइलें उनके टेबल से होकर नहीं गुजर रहीं थीं। कहा जा रहा है कि फाइलें सीधे मुख्यमंत्री के मार्फत दिल्ली गृह मंत्री कार्यालय पहुंच जाती थीं और पंत को ‘पोस्टमैन’ की भूमिका तक सीमित कर दिया गया था। तीसरी, कुछ लोगों का कहना है कि पंत की नाराज़गी उस वक्त से बढ़ने लगी जब मुख्यमंत्री के प्रिंसिपल सेक्रेटरी आलोक गुप्ता का तबादला हुआ। तब से, धीरे-धीरे पंत साइडलाइन होते चले गए। अब ब्यूरोक्रेसी की दुनिया में ‘साइडलाइन’ होना, लगभग रिटायरमेंट जैसा ही दर्दनाक शब्द है। और शायद पंत ने सोचा होगा, ‘जब सम्मान वहीं नहीं, तो दिल्ली क्यों नहीं?’

दिल्ली ने भी उन्हें खुले हाथों से अपनाया। सामाजिक न्याय मंत्रालय में सचिव की कुर्सी उन्हें मिल चुकी है, और सूत्र बताते हैं कि 1 दिसंबर से वे जॉइन कर लेंगे। वैसे यह पहली बार नहीं है जब किसी राजस्थान के मुख्य सचिव को केंद्र में बुलाया गया हो। याद है 2013 में वसुंधरा राजे सरकार के वक्त के सीएस राजीव महर्षि? वे भी सिर्फ 9 महीने बाद दिल्ली चले गए थे। इतिहास खुद को दोहराता दिख रहा है, बस नाम और तारीखें बदली हैं।

अब सवाल यह है कि राजस्थान प्रशासन का अगला ‘बॉस’ कौन बनेगा? सचिवालय के गलियारों में तीन नाम सबसे जोर से गूंज रहे हैं, अखिल अरोड़ा, आनंद कुमार और अभय कुमार। अखिल अरोड़ा 1993 बैच के अफसर हैं, और मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के भरोसेमंद माने जाते हैं। मगर एक लॉबी यह फुसफुसा रही है कि ‘अरे, ये तो गहलोत के भी करीबी थे।’ यानी मामला थोड़ा राजनीतिक रंग ले रहा है। दूसरी तरफ हैं आनंद कुमार, साफ-सुथरी छवि, सबको साथ लेकर चलने वाले अफसर। लेकिन अफसरशाही के कुछ पुराने खिलाड़ी कह रहे हैं, ‘इनसे हां में हां मिलवाना मुश्किल है, यस मैन टाइप नहीं हैं।’ तीसरे हैं अभय कुमार, सीनियर, अनुभवी, पर थोड़े कम मिलनसार। राजपूत समुदाय से आते हैं, और जातीय समीकरण उन्हें थोड़ा मजबूत बना रहे हैं।

कुल मिलाकर यह रेस एकदम बॉलीवुड स्टाइल लग रही है, तीन दावेदार, एक कुर्सी और बैकग्राउंड में दिल्ली से बजती हल्की संगीत। पंत के करीबी कहते हैं कि उन्होंने कभी भी सियासी दखलंदाजी पसंद नहीं की। वे अपने काम से काम रखने वाले अफसर रहे हैं। मगर हकीकत यह भी है कि पिछले कुछ महीनों से वे कई फैसलों से नाखुश थे। शायद इसलिए उन्होंने दिल्ली को बेहतर ठिकाना समझा, जहां सियासत तो है, मगर थोड़ी ‘नेशनल फ्लेवर’ में।

अब जबकि वे दिल्ली में नए रोल में हैं, जयपुर सचिवालय में सबकी निगाहें मुख्यमंत्री की ओर है, कौन होगा नया कप्तान? एक वरिष्ठ अधिकारी ने चुटकी ली, ‘राजस्थान में अब कुर्सी सिर्फ लकड़ी की नहीं, राजनीति की भी होती है, जो कभी स्थिर नहीं रहती।’ तो कहानी यह रही, सुधांश पंत चले दिल्ली, पीछे छोड़ी फाइलों, अफसरों और फुसफुसाहटों की पूरी परत। राजस्थान की ब्यूरोक्रेसी में नया पन्ना खुलने वाला है, और राजधानी के गलियारे इस नए ‘ट्रांसफर सीजन’ की गपशप से गूंज रहे हैं।



