




डॉ. संतोष राजपुरोहित.
भारत में सोने के भाव इन दिनों लगातार नए ऊँचाइयों को छू रहे हैं। जहां आम आदमी इसे ‘महँगाई’ के रूप में महसूस कर रहा है, वहीं अर्थव्यवस्था की गहरी परतों में इसकी कई ठोस वजहें छिपी हैं। सोना सदियों से सुरक्षा, सम्मान और निवेश तीनों का प्रतीक रहा है। जब भी दुनिया में अनिश्चितता बढ़ती है, लोग सोने की ओर दौड़ते हैं। वर्तमान परिदृश्य में भी यही हो रहा है।
दुनिया इस समय एक अस्थिर दौर से गुजर रही है। रूस-यूक्रेन युद्ध, इज़राइल-हमास टकराव, चीन-अमेरिका व्यापार तनाव, वैश्विक ब्याज दरों में उठापटक, तथा मंदी का खतरा। ऐसी अनिश्चित स्थितियों में निवेशक अपने धन को ‘सुरक्षित पनाह’ देने के लिए सोने की ओर रुख करते हैं। सोना सीमित मात्रा में उपलब्ध धातु है और इसका मूल्य राजनीतिक या बैंकिंग संकटों से कम प्रभावित होता है। यही कारण है कि संकट बढ़ते ही सोने की खरीद बढ़ती है, और कीमत भी चढ़ जाती है।

दूसरा बड़ा कारण है रुपए की गिरती साख। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का भाव अमेरिकी डॉलर में तय होता है। जब डॉलर मजबूत होता है और रुपया गिरता है तो भारत में सोना स्वाभाविक रूप से महँगा हो जाता है, भले ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत स्थिर ही क्यों न हो। वर्तमान समय में विदेशी निवेश के निकलने, चालू खाता घाटे और आयात-निर्यात असंतुलन जैसी वजहों से रुपये पर दबाव है। कमजोर रुपया आम भारतीय खरीदार के लिए सोने को और महँगा बना रहा है।

भारत में सोना सिर्फ निवेश नहीं, एक ‘सांस्कृतिक संपत्ति’ है। दिवाली, धनतेरस, नवरात्र, अक्षय तृतीया, ईद आदि त्योहारों के साथ-साथ शादी-ब्याह का मौसम आते ही इसकी मांग अचानक उछाल मारती है। फिर ग्रामीण भारत में फसल बिक्री के बाद नकदी हाथ में आते ही परिवार सोना खरीद कर बचत का पारंपरिक तरीका अपनाते हैं। शादी-समारोह में सोना ‘प्रतिष्ठा’ से भी जुड़ा है। इसलिए घरेलू मांग हर साल कुछ महीनों में विस्फोटक रूप ले लेती है, और कीमतों को ऊपर धकेल देती है।

आगे की तस्वीर भी बहुत हद तक इन्हीं फैक्टरों पर निर्भर करेगी। अगर वैश्विक भू-राजनीतिक तनाव कायम रहा, तो निवेशक सोने में ही सुरक्षा तलाशते रहेंगे। भारत में चुनावी साल की अनिश्चितता और घरेलू मांग के साथ रुपये पर और दबाव आ सकता है। ब्याज दरों में किसी कटौती या मंदी के खतरे के बढ़ने से भी सोना और चढ़ सकता है।

कुल मिलाकर निकट भविष्य में कीमतों में बड़ी गिरावट की संभावना कम दिखती है। हाँ, यदि विश्व में संघर्ष कम हुए, डॉलर कमजोर पड़ा और केंद्रीय बैंक जोखिम वाली परिसंपत्तियों की ओर लौटे, तभी सोने में ठंडक की संभावना बनेगी। सोना इस समय ‘तीन ताकतों’ वैश्विक डर, कमजोर रुपया और घरेलू पारंपरिक मांग के संयुक्त असर से तेजी पर है। आम आदमी के लिए यह स्थिति दो तरह की है।

एक तरफ यह उसकी जेब पर बोझ है, दूसरी तरफ निवेश के रूप में सुरक्षा कवच। इतिहास गवाह है कि जब-जब दुनिया असुरक्षित हुई है, सोना और चमका है। इसलिए अभी के माहौल में सोने का उछाल सिर्फ बाजार का खेल नहीं, बल्कि डर, विश्वास और परंपरा तीनों का संगम है।
-लेखक भारतीय आर्थिक परिषद के सदस्य हैं


