





निराला झा.
भारतीय संस्कृति में पर्व-त्योहार केवल रस्में नहीं होते, बल्कि जीवन को संतुलन और रिश्तों को गहराई देने वाले अवसर होते हैं। करवा चौथ भी ऐसा ही पर्व है, जिसे परंपरागत रूप से विवाहित महिलाएँ अपने पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना के लिए व्रत रखकर मनाती हैं। किंतु यदि हम इस उत्सव को केवल ‘पत्नी द्वारा पति के लिए किए गए उपवास’ तक सीमित कर दें, तो यह अधूरा दृष्टिकोण होगा। आधुनिक परिप्रेक्ष्य में करवा चौथ दांपत्य जीवन के उस संतुलन, विश्वास और परस्पर सम्मान का उत्सव है, जिसकी आज समाज को सबसे अधिक आवश्यकता है।

आज का समय तेज़ रफ्तार और व्यस्तताओं से भरा हुआ है। मोबाइल और सोशल मीडिया के बीच संवाद का स्वरूप बदल गया है। पति-पत्नी अक्सर साथ होते हुए भी ‘अकेलेपन’ का अनुभव करते हैं। छोटी-छोटी बातों पर तकरार बढ़ जाती है और सहनशीलता कम होती जा रही है। यही वजह है कि वैवाहिक जीवन में तल्खी और दूरी बढ़ने लगी है। ऐसे माहौल में करवा चौथ केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि दांपत्य जीवन की डोर को और मजबूत करने का अवसर भी है।

भारतीय समाज में लंबे समय तक करवा चौथ को केवल ‘पत्नी के त्याग’ से जोड़ा गया। लेकिन बदलते समय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि विवाह केवल एकतरफ़ा दायित्व नहीं, बल्कि साझेदारी है। पति और पत्नी दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। कोई बड़ा या छोटा नहीं, दोनों बराबर हैं। ऐसे में यह पर्व संदेश देता है कि जीवनसाथी केवल ‘पति की लंबी उम्र’ की चिंता न करे, बल्कि दोनों ही एक-दूसरे के सुख, स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए संकल्प लें। आज कई घरों में पति भी अपनी पत्नियों के लिए उपवास रखते हैं, जो इस पर्व को और अधिक सार्थक बना देता है।

करवा चौथ की जड़ें परंपरा में हैं, लेकिन इसका संदेश अत्यंत आधुनिक है। यह दिन हमें यह सोचने का अवसर देता है कि क्या हम अपने संबंधों में उतना ही समय, ऊर्जा और संवेदनशीलता लगा रहे हैं जितना लगाना चाहिए। आज जब तलाक और अलगाव के मामले बढ़ रहे हैं, तब यह पर्व स्मरण कराता है कि वैवाहिक जीवन का आधार केवल आकर्षण नहीं, बल्कि विश्वास और धैर्य है। यदि पति-पत्नी परस्पर सम्मान और बराबरी की भावना रखें, तो कोई भी परिस्थिति उनके रिश्ते को तोड़ नहीं सकती।

करवा चौथ का सबसे बड़ा संदेश यही है कि पति-पत्नी एक-दूसरे के लिए समय निकालें। दिनभर का व्रत और रात का चाँद देखने की रस्म प्रतीक है कि जीवन में चाहे कितनी भी व्यस्तता हो, जीवनसाथी की उपस्थिति सबसे महत्वपूर्ण है। आज की भागदौड़ में यही वह बात है जो सबसे अधिक छूटती जा रही है। रिश्तों को मजबूत बनाए रखने के लिए समय देना और छोटी-छोटी खुशियाँ साझा करना सबसे ज़रूरी है।

किसी भी विवाह का आधार संवाद और विश्वास होता है। करवा चौथ इसी बात को रेखांकित करता है। व्रत केवल भूखा रहना नहीं, बल्कि एक व्रत, अर्थात् संकल्प है कि हम अपने रिश्ते की डोर को हर परिस्थिति में मजबूत बनाए रखेंगे। जब पति-पत्नी इस पर्व को केवल रस्म की तरह नहीं, बल्कि संवाद का अवसर मानते हैं, तो इसका प्रभाव पूरे परिवार और समाज पर सकारात्मक रूप से पड़ता है।

आज के समाज में करवा चौथ महिलाओं के त्याग का प्रतीक मात्र नहीं रह गया है, बल्कि बराबरी और परस्पर साझेदारी का संदेश दे रहा है। यह पर्व हमें यह सोचने के लिए प्रेरित करता है कि रिश्ते केवल भौतिक सुख-सुविधाओं से नहीं चलते, बल्कि भावनात्मक जुड़ाव और आपसी विश्वास से पनपते हैं। आधुनिक दांपत्य जीवन में जहाँ कई बार ‘इगो’ और ‘स्वार्थ’ रिश्तों पर हावी हो जाते हैं, वहीं करवा चौथ याद दिलाता है कि विवाह का सार ‘हम’ है, न कि ‘मैं’।

करवा चौथ का वास्तविक महत्व यही है कि पति-पत्नी एक-दूसरे की बराबरी के सहभागी हैं। जब सहनशीलता घट रही हो और रिश्तों में कड़वाहट बढ़ रही हो, तब यह पर्व हमें रुककर सोचने का अवसर देता है कि क्या हम अपने जीवनसाथी को वह सम्मान और समय दे रहे हैं, जिसके वे हकदार हैं। यह दिन केवल व्रत और चाँद तक सीमित नहीं है, बल्कि एक गहरा संदेश देता है, विवाह का अर्थ है परस्पर सम्मान, विश्वास और बराबरी पर आधारित साझेदारी। इस दृष्टि से करवा चौथ केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि आधुनिक दांपत्य जीवन को नई दिशा देने वाला उत्सव है। यह हमें सिखाता है कि प्रेम और विश्वास से बड़ा कोई व्रत नहीं और जीवनसाथी के सुख-दुख में साथ निभाने से बड़ी कोई पूजा नहीं।

