





गोपाल झा.
कांग्रेस में हलचल है। बरसों बाद संगठन के भीतर ऐसी हलचल दिखाई दे रही है, जो केवल पद की नहीं, प्रक्रिया की भी है। संगठन सृजन अभियान के नाम से चल रहे इस प्रयोग के तहत हनुमानगढ़ में जिलाध्यक्ष चयन की प्रक्रिया शुरू हुई है। पर्यवेक्षक अमित विज, जो पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष हैं, इन दिनों जिले के राजनीतिक मिज़ाज को समझने में जुटे हैं। कार्यकर्ताओं से लेकर सांसदों और विधायकों तक से वह फीडबैक ले रहे हैं। सर्किट हाउस में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने साफ कहा, ‘अब पद प्रदर्शन से तय होंगे, निष्ठा से नहीं।’ यह वाक्य कांग्रेस के भीतर नई सोच की आहट देता है, पर साथ ही पुराने भय को भी जगा देता है।

13 अक्टूबर तक आवेदन मांगे गए हैं। अब तक 10 आवेदन आ चुके हैं, और माना जा रहा है कि संख्या तीस पार कर जाएगी। यानी हनुमानगढ़ में जिलाध्यक्ष पद के लिए करीब 30 से अधिक ‘नेता’ तैयारी में हैं। यह विडंबना है कि जिस पद के लिए योग्यतम संघर्षशील कार्यकर्ता की जरूरत है, उसके लिए ऐसे चेहरे आवेदन कर रहे हैं जिन्हें शायद जनता ढंग से जानती भी नहीं। उन्हें कभी सड़कों पर देखा ही नहीं। कांग्रेस की यही समस्या है, जहां जनाधार सिकुड़ रहा है, वहां दावेदारों की भीड़ बढ़ती जा रही है।

अमित विज ने कहा कि नए जिलाध्यक्षों को चार-पांच महीने तक परखा जाएगा। उनका परफॉर्मेंस देखा जाएगा, उनकी सक्रियता मापी जाएगी। यानी कांग्रेस प्रयोग की राह पर है, ‘देखो, कौन टिकता है’ वाला प्रयोग। पहली नजर में यह लोकतंत्र की खूबसूरत झलक लगता है, पर यह भी सच है कि कांग्रेस का इतिहास ऐसे प्रयोगों से भरा पड़ा है जो ऊर्जावान शुरुआत के बाद निष्क्रियता में खो गए। एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस के उदाहरण सामने हैं, जहां कभी जोश था, पर अब ढांचा है, आत्मा नहीं। हां, अभिमन्यु पूनिया को बागडोर मिलने के बाद यूथ कांग्रेस के होने का जरूर अहसास हुआ है।

फिर भी, यह नहीं कहा जा सकता कि आलाकमान ने यह कदम बिना कुछ सोचे उठाया है। पार्टी को लंबे समय से कार्यकर्ताओं की निष्क्रियता, गुटबाजी और अवसरवाद का सामना करना पड़ा है। यह अभियान शायद उस जड़ता को तोड़ने का प्रयास है। अब वे कार्यकर्ता भी बाहर आ रहे हैं जो वर्षों से मौन दर्शक बने हुए थे। वे अपना बायोडाटा लेकर ऑब्जर्वर के पास पहुंच रहे हैं। यह दृश्य कांग्रेस के भीतर महत्वाकांक्षा की वापसी का प्रतीक है। पर सवाल यह है, क्या यह सक्रियता संगठन के पुनर्निर्माण की भूमिका बनेगी या केवल पद पाने की होड़ का मंच?

कांग्रेस में समस्या व्यक्ति से नहीं, प्रवृत्ति से है। यहां जो जितना ‘ऊपर’ से जुड़ा है, वह उतना ‘नीचे’ से कटा हुआ है। बड़े नेताओं की चापलूसी को संगठन-निष्ठा का प्रतीक मान लिया गया है। और जो जनता के बीच रहता है, उसे ‘अनुशासनहीन’ कहकर किनारे कर दिया जाता है। यही कारण है कि कांग्रेस के भीतर सच्चे कार्यकर्ता हाशिये पर हैं, और ‘मीडिया मित्र’ बने नेता सुर्खियों में। पार्टी की यह सामाजिक संरचना ही उसके पतन की सबसे बड़ी वजह रही है।

जिलाध्यक्ष का पद किसी औपचारिक कुर्सी का नहीं, बल्कि जिम्मेदारी का प्रतीक है। यह पद वह कड़ी है जो विधायक, सांसद, कार्यकर्ता और आम जनता को जोड़ती है। लेकिन जब यह पद ‘दावेदारी की राजनीति’ में उलझ जाता है, तो संगठन का संतुलन बिगड़ जाता है। कांग्रेस को यह समझना होगा कि जिलाध्यक्ष केवल नाम नहीं, नेटवर्क होता है, संघर्ष का चेहरा, संवाद का पुल, और सामंजस्य का केंद्र।

फिर भी, इस अभियान को नकारा नहीं जा सकता। यह कांग्रेस के भीतर नई हवा का संकेत है। पार्टी ने अपने निष्क्रिय कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया है, उन्हें मंच दिया है, उन्हें मौका दिया है। यह ऊर्जा यदि सही दिशा में बहाई गई, तो कांग्रेस का संगठन फिर से मजबूत हो सकता है। लेकिन यदि यह ऊर्जा महत्वाकांक्षा की आग में जल गई, तो यही लौ दुविधा में बदल जाएगी।

कांग्रेस का यह प्रयोग लोकतंत्र का सौंदर्य भी है और जोखिम भी। पार्टी अपने भीतर आत्म-शुद्धि का प्रयास कर रही है। पर सवाल यह है कि क्या वह अपने अतीत की गलतियों से सबक ले पाएगी? क्या यह सक्रियता स्थायित्व बनेगी या केवल शोर?
राजनीति में प्रयोग तभी सफल होते हैं जब उनमें नीयत साफ हो और नेतृत्व मजबूत। कांग्रेस ने यह कदम उठाया है, अब उसे तय करना होगा कि यह कदम संगठन की जमीन पर पड़ रहा है या हवा में। अगर यह अभियान ‘कार्यकर्ता केंद्रित कांग्रेस’ का आरंभ बन पाया, तो शायद यह पार्टी के लिए नई सुबह होगी। लेकिन अगर यह ‘पद केंद्रित कांग्रेस’ की एक और कहानी बनकर रह गया, तो यह सक्रियता दुविधा की दस्तक बन जाएगी। क्योंकि अंततः, यह कांग्रेस है!
-लेखक भटनेर पोस्ट मीडिया ग्रुप के चीफ एडिटर हैं


