






भटनेर पोस्ट ब्यूरो.
दशहरे पर इस बार हनुमानगढ़ एक अनूठी और प्राचीन परंपरा का साक्षी बनने जा रहा है। श्री दुर्गा रामलीला समिति, हनुमानगढ़ जंक्शन ने इस वर्ष 52 फीट ऊंचे रावण का पुतला गोबर, सरकंडा, नारियल गोला और गाय के घी जैसे पूरी तरह से प्राकृतिक और पवित्र पदार्थों से तैयार करने का निर्णय लिया है। इस पुतले में न तो पटाखे होंगे, न प्लास्टिक और न ही बांस का इस्तेमाल किया जाएगा। समिति का दावा है कि यह आयोजन भारतीय संस्कृति की उस लुप्त होती परंपरा को पुनर्जीवित करेगा, जिसमें रावण का विधिवत दहन उसके अंतिम संस्कार की तरह किया जाता था।

आयोजन स्थल जिला कलेक्ट्रेट, हनुमानगढ़ के सामने स्थित नगर परिषद द्वारा आवंटित भूमि को चुना गया है। यहां भूमि पूजन और ध्वजा स्थापना की गई। इस मौके पर समिति अध्यक्ष प्रकाश तंवर, सचिव बलजीत सिंह, डायरेक्टर गिरीराज शर्मा, प्रेम दाधीच, प्रवक्ता दिनेश कुमार, विजय कौशिक, दिलीप शेखावत, आशीष पारीक, अनिल कुमार शर्मा, वतन बंसल, सतपाल बंसल और गुरदयाल मौजूद रहे।

समिति अध्यक्ष प्रकाश तंवर ने बताया कि विजयादशमी के दिन 6 बजकर 06 मिनट पर गोधूलि बेला में रावण दहन संपन्न होगा। इससे पूर्व दोपहर 4 बजे से लेकर 6 बजे तक भगवान श्रीराम की लीला का मंचन होगा। ठीक 3 घंटे पहले शुभ मुहूर्त में हवन कर अग्नि प्रज्वलित की जाएगी। रावण दहन के बाद शाम 7 बजकर 15 मिनट पर भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक कार्यक्रम भी संपन्न होगा।

कार्यक्रम के प्रेरक पंडित विष्णु दत्त शर्मा ने शास्त्रोक्त विवेचन करते हुए बताया कि लगभग 50 साल पहले तक हमारे पूर्वज रावण का पुतला गोबर से ही बनाते थे। दरअसल, प्राचीन काल में जब युद्धभूमि से योद्धाओं के शव नहीं मिलते थे या शरीर क्षत-विक्षत हो जाते थे, तब उनके स्थान पर पुतला बनाकर विधिवत दहन किया जाता था। इसी परंपरा को रावण के अंत्येष्टि संस्कार के रूप में भी निभाया जाता रहा है।

उन्होंने बताया कि भगवान श्रीराम ने स्वयं वाल्मीकि रामायण युद्धकांड में विभीषण को आदेश दिया था कि रावण का अंतिम संस्कार सम्मानपूर्वक किया जाए। राम ने कहा था, ‘वैर मृत्यु पर्यंत ही रहता है। मृत्यु के बाद शत्रु का भी सम्मानपूर्वक संस्कार करना चाहिए।’ इसी आज्ञा का पालन करते हुए रावण का सोने की अर्थी पर दक्षिण लंका में विधिवत दहन किया गया था। यही परंपरा भारत में सदियों तक जीवित रही, लेकिन पिछले कुछ दशकों में पटाखों और कृत्रिम पुतलों के कारण यह लुप्त हो गई।
समिति सचिव बलजीत सिंह का मानना है कि इस परंपरा की पुनर्स्थापना से न केवल पटाखों पर होने वाले अनावश्यक व्यय पर रोक लगेगी बल्कि गोशालाओं को भी आर्थिक सहयोग मिलेगा। साथ ही, यह आयोजन समाज को पर्यावरण संरक्षण और भारतीय संस्कृति की वैज्ञानिक परंपराओं के महत्व से भी परिचित कराएगा।

विजय कौशिक ने बताया कि हनुमानगढ़, जो मां भद्रकाली की छत्रछाया में और हनुमान जी महाराज के पवित्र नाम पर स्थापित है, इस बार विजयादशमी पर इतिहास रचने जा रहा है। नगरवासियों के लिए यह अवसर केवल उत्सव का ही नहीं, बल्कि अपनी धरोहर और संस्कृति को पुनर्जीवित करने का भी है।




