






भटनेर पोस्ट ब्यूरो.
हनुमानगढ़ जिला मुख्यालय स्थित सेक्टर 12 का सामुदायिक केंद्र कुछ देर के लिए राजनीति का अखाड़ा बन गया। यहां आयोजित शहरी सेवा शिविर में निवर्तमान पार्षद मदन बाघला और सैनिक कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष एवं राज्य स्तरीय सैनिक कल्याण सहलाकर समिति के अध्यक्ष, राज्यमंत्री प्रेम सिंह बाजौर के बीच तीखी बहस छिड़ गई। माहौल इतना गर्माया कि मंत्री मंच छोड़कर शिविर से बाहर निकल गए, जबकि नागरिकों ने बाघला का पुरजोर समर्थन किया।

शिविर में जैसे ही राज्यमंत्री प्रेम सिंह बाजौर का संबोधन खत्म हुआ, निवर्तमान पार्षद मदन बाघला ने परिचित अंदाज़ में खरी-खरी सुनानी शुरू कर दी। बाघला ने कहा,:सरकार पूरी तरह फेल हो गई है। हर कोई दुखी है। मंत्री आते हैं, झूठे भाषण देकर चले जाते हैं। इससे लाख गुना बढ़िया कांग्रेस की सरकार थी।’ उनकी यह टिप्पणी सुनते ही माहौल सन्नाटे से गूंज उठा और मंत्री बाजौर तिलमिला उठे। उन्होंने बाघला को रोकने की कोशिश की, लेकिन बाघला अपनी बात पर अड़े रहे।

बाघला यहीं नहीं रुके। उन्होंने कहा कि शहरी सेवा शिविर सिर्फ सरकार का गुणगान करने वाला कार्यक्रम बनकर रह गया है। जनता के असल काम निपटाए ही नहीं जा रहे। न पट्टे बन रहे, न राहत मिल रही। सरकार ने भूखंडों को लेकर डी-नोटिफाई कर दिया, लेकिन आज तक उसकी परिभाषा ही स्पष्ट नहीं की।

बाघला ने जब तीखे लहजे में कहा, ‘मंत्रीजी! जनता को बेवकूफ क्यों बना रहे हो?’ तब राज्यमंत्री बाजौर भड़क उठे। उन्होंने मंच से खड़े होकर बाघला को जवाब देना चाहा, लेकिन बढ़ते हंगामे को देखते हुए कुछ ही देर बाद शिविर छोड़कर बाहर चले गए।

मंत्री के बाहर जाते ही माहौल एकतरफा हो गया। नागरिक बाघला के समर्थन में खड़े हो गए और जोरदार आवाज़ में कहा कि उन्होंने जनता की असली पीड़ा उठाई है। सेक्टर 12 के निवासी राज कुमार अरोड़ा ने कहा, ‘इन शिविरों में जनता के कोई काम नहीं होते। नेता आते हैं, भाषण झाड़ते हैं और झूठ बोलकर चले जाते हैं। जनता हर बार खुद को ठगा हुआ महसूस करती है।’
शहरी सेवा शिविर का उद्देश्य जनता की समस्याओं का मौके पर समाधान करना था, लेकिन मौके पर देखने को मिला सिर्फ भाषणबाज़ी और राजनीतिक नोंकझोंक। लोगों का कहना है कि न तो भूखंड संबंधी विवाद सुलझे, न ही पट्टों का वितरण हुआ। राहत और योजनाओं का नाम मात्र की खानापूर्ति हुई।

पूर्व पार्षद मदन बाघला का कहना था कि शिविर सरकार के गुणगान की औपचारिकता बन गए हैं। जनता की समस्याएं जस की तस हैं। अधिकारी और मंत्री आते हैं, फोटो खिंचवाते हैं और चले जाते हैं। असल मुद्दे अंधेरे में धकेल दिए जाते हैं।
इस बहस ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या ऐसे शिविर महज़ सरकारी इवेंट रह गए हैं? जनता की आवाज़ बुलंद करने वाले प्रतिनिधियों को टोकने की बजाय उनसे संवाद क्यों नहीं किया जाता? नागरिकों का कहना है कि बाघला की आवाज़ भले ही तीखी थी, पर उसमें जनता की पीड़ा झलक रही थी। राजनीति के इस टकराव ने शिविर की असल तस्वीर सामने ला दी, जनता समाधान के लिए आई थी, लेकिन उसे मिला सिर्फ नेताओं का टकराव और वादों का पुलिंदा।




