







डॉ. संतोष राजपुरोहित.
भारत की अर्थव्यवस्था सदियों से आत्मनिर्भरता और स्वदेशी की भावना से प्रेरित रही है। ‘स्वदेशी’ शब्द केवल उत्पादों के प्रयोग तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी सोच है जो आत्मनिर्भरता, स्वावलंबन और राष्ट्रीय गौरव से जुड़ी है। आजादी के आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने स्वदेशी को राष्ट्र पुनर्निर्माण का आधार माना था। आज उसी विचार को आधुनिक संदर्भ में ‘आत्मनिर्भर भारत’ के रूप में पुनर्जीवित किया जा रहा है। इस दिशा में जीएसटी-02 जैसे कर सुधार भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, क्योंकि यह केवल राजस्व संग्रहण का माध्यम नहीं बल्कि आर्थिक ढांचे को सुदृढ़ करने का उपकरण है।

वस्तु एवं सेवा कर का पहला चरण 2017 में लागू हुआ, जिसने ‘वन नेशन, वन टैक्स’ की परिकल्पना को मूर्त रूप दिया। इसका दूसरा चरण, जिसे जीएसटी-02 कहा जा सकता है, कर प्रशासन में डिजिटल पारदर्शिता, ई-इनवॉइसिंग, ऑटो-रिकॉन्सिलिएशन और ई-कॉमर्स नियमन को और मजबूत करता है।

इससे न केवल कर चोरी पर अंकुश लगता है, बल्कि लघु एवं मध्यम उद्यम को औपचारिक अर्थव्यवस्था में शामिल होने का अवसर मिलता है। भारत में एमएसएमई क्षेत्र 6.3 करोड़ इकाइयों और लगभग 11 करोड़ लोगों को रोजगार प्रदान करता है। जीएसटी-02 ने इस क्षेत्र के लिए टैक्स अनुपालन को सरल बनाया, जिससे वे देश और विदेश के बड़े बाजारों तक पहुँच पा रहे हैं।

भारत के पास विशाल प्राकृतिक संसाधन और युवा जनसंख्या है। यदि इन संसाधनों का सही दिशा में उपयोग हो, तो भारत विदेशी आयात पर निर्भरता कम कर सकता है। यही ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ का सार है। मेक इन इंडिया अभियान ने घरेलू उत्पादन क्षमता को बढ़ाने पर जोर दिया। वोकल फॉर लोकल पहल ने उपभोक्ताओं को स्वदेशी उत्पाद अपनाने के लिए प्रेरित किया। पीएलआई योजना ने मोबाइल निर्माण, इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा और ऑटोमोबाइल जैसे क्षेत्रों में निवेश बढ़ाया। उदाहरण के लिए, आज भारत मोबाइल निर्माण में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा केंद्र बन चुका है। ये पहलें आत्मनिर्भर भारत को केवल एक नारा नहीं रहने देतीं, बल्कि व्यवहारिक नीति के रूप में लागू करती हैं।

स्वदेशी और आत्मनिर्भरता की दिशा में जीएसटी-02 एक प्रेरक शक्ति है। जीएसटी-02 ने विभिन्न अप्रत्यक्ष करों की जटिलता को खत्म कर स्वदेशी उद्योगों के लिए समान अवसर उपलब्ध कराए। जीएसटी पोर्टल और ई-वे बिल प्रणाली ने छोटे व्यापारियों को औपचारिक डिजिटल ढाँचे से जोड़ा। कर दरों में एकरूपता और ई-कॉमर्स तक पहुँच ने स्थानीय उत्पादकों को बड़े ब्रांड्स के साथ प्रतिस्पर्धा का मौका दिया। जीएसटी रिफंड प्रक्रिया और ई-इनवॉइसिंग ने निर्यातकों के लिए लागत घटाई और स्वदेशी उत्पादों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मजबूत की।

भारत की आत्मनिर्भरता केवल घोषणाओं पर निर्भर नहीं है, बल्कि इसके लिए तीन स्तरों पर बदलाव जरूरी है। स्थानीय उद्योगों को प्रोत्साहन और आधुनिक तकनीक का उपयोग। जीएसटी-02 जैसी एकीकृत कर प्रणाली से उत्पादों का सुगम आवागमन। उपभोक्ताओं का ष्लोकलष् उत्पादों को प्राथमिकता देना। यदि हम स्वदेशी वस्तुओं की खरीद को बढ़ावा दें तो आयात पर निर्भरता घटेगी, विदेशी मुद्रा की बचत होगी और भारत का व्यापार संतुलन सुधरेगा।

जीएसटी संग्रह में वृद्धि अच्छी है, लेकिन रिफंड की बढ़ती जिम्मेदारी ने शुद्ध राजस्व वृद्धि को कम किया है; इससे राज्यों की वित्तीय स्थिति पर दबाव हो सकता है। एमएसएमई का जीडीपी में 30 फीसद योगदान है, जो सकारात्मक है, पर लक्ष्य था कि यह भाग 40 फीसद तक पहुँचे; अभी वह लक्ष्य पूरी तरह से हासिल नहीं हुआ है। आयात करों में वृद्धि यह दर्शाती है कि अभी भी स्थानीय उत्पादन पूरी तरह से आयात प्रतिस्थापन नहीं कर पा रहा; आत्मनिर्भरता की दिशा में और प्रयासों की आवश्यकता है।

जीएसटी-02, स्वदेशी और आत्मनिर्भर भारत अभियान तीनों मिलकर भारतीय अर्थव्यवस्था के भविष्य को दिशा दे रहे हैं। जहाँ जीएसटी-02 पारदर्शी और सरल कर व्यवस्था लाता है, वहीं स्वदेशी और आत्मनिर्भरता के विचार घरेलू उत्पादन और उपभोग को मजबूत करते हैं। पीएलआई योजना, मेक इन इंडिया और एमएसएमई क्षेत्र इस दिशा में आधार स्तंभ की भूमिका निभा रहे हैं। यदि सरकार, उद्योग और उपभोक्ता मिलकर इस सोच को व्यवहार में लाएँ, तो भारत न केवल आत्मनिर्भर बनेगा बल्कि वैश्विक मंच पर ‘आर्थिक महाशक्ति’ के रूप में अपनी पहचान भी स्थापित करेगा।
-लेखक भारतीय आर्थिक परिषद के सदस्य हैं


