





भटनेर पोस्ट ब्यूरो.
राजस्थान की राजनीति इन दिनों एक अहम मोड़ पर खड़ी है। शहरी निकाय और पंचायतीराज चुनावों का टलना विपक्ष को हमलावर बना रहा है। कांग्रेस ने इसे भारतीय जनता पार्टी और राज्य सरकार की विफलता करार देते हुए आरोप लगाया है कि सरकार जनता का सामना करने से बच रही है। वहीं, यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि 2026 में होने वाले नगर निकाय चुनाव के लिए विभाग पूरी तैयारी कर चुका है।

मंत्री के अनुसार, वार्डों का पुनर्गठन कर लिया गया है। अब केवल दो महत्वपूर्ण प्रक्रियाएं शेष हैं, पहली, राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाता सूचियों का अंतिम प्रकाशन और दूसरी, अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग से ओबीसी जनसंख्या का डाटा उपलब्ध कराना। ओबीसी डाटा मिलने के बाद आरक्षण की लॉटरी निकाली जाएगी और उसके बाद ही निर्वाचन आयोग को ‘एक राज्य, एक चुनाव’ की अवधारणा के तहत चुनाव कराने का अनुरोध भेजा जाएगा।

मंत्री के इस बयान ने सियासी गलियारों में नई चर्चा छेड़ दी है। विपक्ष यह तर्क दे रहा है कि मंत्री कई बार कह चुके हैं कि सरकार इसी साल चुनाव करवाएगी। अब अचानक 2026 का हवाला देना सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करता है। यह तो साफ हो गया है कि इस साल चुनाव किसी भी सूरत में नहीं होंगे, लेकिन अगले साल की अवधि को लेकर भी स्थिति धुंधली है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चुनाव टलने के पीछे केवल प्रक्रियात्मक कारण नहीं हैं। असली वजह है, बीजेपी की अंदरूनी खींचतान और सरकार से जनता की नाराजगी। सत्ता पक्ष की कार्यशैली से असंतोष बढ़ा है और अगर चुनाव समय पर कराए जाते, तो इसका सीधा असर वोटिंग पैटर्न पर पड़ सकता था। यही कारण है कि सरकार ने चुनाव टालने का रास्ता चुना है।

सरकार ने इस बीच जनता की नाराजगी कम करने के लिए विशेष सेवा शिविरों की शुरुआत की है। इन शिविरों में पट्टे से लेकर पेंशन और राजस्व मामलों तक, 18 विभागों की सेवाएं एक ही जगह उपलब्ध कराई जा रही हैं। इसका उद्देश्य है, लोगों की समस्याओं का समाधान कर जनता का भरोसा फिर से जीतना और चुनाव से पहले माहौल अपने पक्ष में करना।

कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी जनता के मूड को समझ चुकी है और इसी डर से चुनाव टाले जा रहे हैं। विपक्ष का यह भी आरोप है कि चुनाव प्रक्रिया में देरी लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ है। कांग्रेस नेताओं ने तंज कसते हुए कहा कि सरकार जनता को “शिविरों और घोषणाओं” में उलझाना चाहती है, लेकिन हकीकत यह है कि वह जमीनी असंतोष से घबराई हुई है।

दरअसल, चुनाव टलने का यह घटनाक्रम राजस्थान में सत्ता समीकरणों को गहराई से प्रभावित कर सकता है। जहां सत्ता पक्ष प्रशासनिक मजबूरियों का हवाला दे रहा है, वहीं विपक्ष इसे सरकार की कमजोरी बता रहा है। आम जनता के बीच भी संशय बना हुआ है कि आखिर चुनाव कब होंगे।

राजस्थान में निकाय और पंचायतीराज चुनावों का टलना केवल एक प्रशासनिक विलंब नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरी राजनीतिक रणनीति छिपी दिखाई देती है। सत्ता पक्ष समय लेकर जनता को साधने की कोशिश कर रहा है, वहीं विपक्ष इसे सरकार की नाकामी करार दे रहा है। चुनाव कब होंगे, यह सवाल अभी अनुत्तरित है, लेकिन इतना तय है कि इस देरी ने प्रदेश की राजनीति को और भी ज्यादा गर्मा दिया है।




