






डॉ. संतोष राजपुरोहित.
भारत और नेपाल के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक तथा भौगोलिक संबंध हमेशा से घनिष्ठ रहे हैं। दोनों देशों की खुली सीमाएँ, आपसी व्यापार और जन-आवागमन इस रिश्ते को विशिष्ट बनाते हैं। किंतु हाल ही में नेपाल में उत्पन्न राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक संकट तथा आंतरिक विभाजन ने न केवल नेपाल की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है, बल्कि भारत के लिए भी व्यापारिक और सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं। यह स्थिति विशेष रूप से इसलिए महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि भारत-नेपाल संबंध दक्षिण एशियाई भू-राजनीति और क्षेत्रीय स्थिरता के दृष्टिकोण से भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं।

सबसे पहले व्यापारिक दृष्टिकोण से देखें तो भारत नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। नेपाल अपने आयात का लगभग दो-तिहाई हिस्सा भारत से प्राप्त करता है। पेट्रोलियम उत्पाद, दवाइयाँ, मशीनरी और खाद्यान्न जैसी बुनियादी वस्तुएँ भारत से नेपाल को निर्यात की जाती हैं। वहीं नेपाल भारत को कृषि उत्पाद, वन उत्पाद और कुछ खनिज निर्यात करता है।

लेकिन जब नेपाल संकट में घिरता है, चाहे वह राजनीतिक अस्थिरता, सीमा नाकेबंदी या विदेशी दबावों के कारण हो, तो इन वस्तुओं की आवाजाही पर प्रतिकूल असर पड़ता है। हाल की परिस्थितियों ने आपूर्ति शृंखला में अवरोध उत्पन्न किए हैं, जिससे नेपाल में आवश्यक वस्तुओं का अभाव और भारत में सीमा व्यापार से जुड़े उद्योगों का नुकसान दोनों देखे गए हैं।

दूसरे, नेपाल संकट से भारत की ऊर्जा सुरक्षा भी प्रभावित होती है। नेपाल में जलविद्युत की अपार संभावनाएँ हैं और भारत लंबे समय से इस क्षेत्र में निवेश करता आया है। लेकिन राजनीतिक अस्थिरता और अविश्वास के माहौल में ऊर्जा परियोजनाओं पर अनिश्चितता बढ़ जाती है। इससे भारत की ऊर्जा नीति और सीमा क्षेत्र की विकास योजनाओं को बाधा पहुँचती है।

तीसरे, नेपाल में अस्थिरता का सीधा असर भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा पर पड़ता है। भारत-नेपाल की लगभग 1,770 किलोमीटर लंबी खुली सीमा सुरक्षा दृष्टि से संवेदनशील है। नेपाल में यदि शासन-प्रशासन कमजोर होता है तो इस सीमा से अवैध तस्करी, मानव तस्करी और असामाजिक गतिविधियों में वृद्धि हो सकती है। चीन की बढ़ती उपस्थिति और रणनीतिक दखलंदाजी इस सुरक्षा चिंता को और गहरा देती है। भारत की उत्तरी सीमा क्षेत्रों में यह असंतुलन दीर्घकालीन सुरक्षा चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकता है।

इसके अतिरिक्त, नेपाल संकट भारत-नेपाल के सामाजिक-सांस्कृतिक रिश्तों पर भी असर डालता है। जब दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता है तो सीमा क्षेत्रों में रहने वाले आम नागरिकों के लिए व्यापार, आवागमन और रोजगार के अवसर सिमट जाते हैं। परिणामस्वरूप असंतोष और असुरक्षा की भावना पनप सकती है।

हालाँकि, इस संकट में भारत के लिए अवसर भी छिपे हैं। यदि भारत नेपाल को मानवीय सहायता, आर्थिक सहयोग और राजनीतिक स्थिरता स्थापित करने में सहयोग करता है तो न केवल द्विपक्षीय रिश्ते मजबूत होंगे बल्कि क्षेत्रीय सहयोग की दिशा में भी सकारात्मक संदेश जाएगा। भारत की ‘पड़ोसी प्रथम’ नीति के तहत नेपाल को स्थिर और सहयोगी राष्ट्र बनाना उसकी रणनीतिक प्राथमिकता होनी चाहिए।

अंत में, नेपाल संकट केवल नेपाल की समस्या नहीं है बल्कि भारत के लिए भी यह गंभीर चुनौती है। इसका असर व्यापार, ऊर्जा, सामाजिक ताने-बाने और सुरक्षा सभी पर पड़ता है। भारत को चाहिए कि वह संवेदनशीलता और परिपक्व कूटनीति के साथ नेपाल का सहयोग करे, ताकि सीमा पार सहयोग और विश्वास की पुनर्स्थापना हो सके। तभी दक्षिण एशिया में शांति, स्थिरता और आर्थिक प्रगति सुनिश्चित हो पाएगी।
-लेखक आर्थिक मामलों के जानकार व भारतीय आर्थिक परिषद के सदस्य हैं


