






भटनेर पोस्ट ब्यूरो.
मंगलवार का दिन हनुमानगढ़ टाउन के ऐतिहासिक गुरुद्वारा शहीद बाबा सुखा सिंह, बाबा महताब सिंह में एक अद्भुत अनुभव लेकर आया। सुबह की हल्की धूप में जैसे ही संगतों की भीड़ गुरुद्वारे के प्रांगण में पहुंची, वातावरण श्रद्धा, भक्ति और सेवा भाव से सराबोर हो गया। यह मेला केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि युवाओं के लिए पंथ, समाज और मानवता की सेवा का संदेश भी लेकर आता है।

मेला पंथ रतन सिंह साहब जत्थेदार बाबा बलवीर सिंह जी 96 करोड़ी मुखी बुढ़ा दल की अगुवाई में आयोजित हुआ। सुबह 10 बजे लड़ीवार अखंड पाठ साहिब के भोग डाले गए। इसके बाद फोर्ट स्कूल ग्राउंड में खुले दीवान में हजारों संगत शामिल हुई। इतनी भीड़ थी कि नगर की यातायात व्यवस्था प्रभावित हुई, लेकिन पुलिस प्रशासन और सेवादारों ने मिलकर इसे नियंत्रित किया।

दीवान में उपस्थित संतों में बाबा मनमोहन सिंह बारनवाले, बाबा जोगा सिंह करनाल वाले, बाबा मोर सिंह, बाबा नादर सिंह होशियारपुर, भााई सुखजीत सिंह कन्हैया, भााई हरजीत सिंह इंग्लैंड यू.के. और हरमंदिर साहिब से आए रागी जत्थे शामिल थे। कथा वाचक लखविंदर सिंह पारस और लखबीर सिंह कोटकपूरा ने कथा-कीर्तन के माध्यम से संगत को निहाल किया।

जत्थेदार बाबा बलवीर सिंह ने गुरु इतिहास पर प्रकाश डालते हुए संगत को बताया कि सिख इतिहास बलिदान, त्याग और धर्मनिष्ठा का जीवंत उदाहरण है। उन्होंने कहा कि गुरु नानक देव जी ने सत्य, नाम सिमरन और सेवा का मार्ग दिखाया। गुरु अर्जुन देव जी ने सत्य की राह में शहादत स्वीकार की, गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने मीरी-पीरी का संदेश दिया और गुरु तेग बहादुर साहिब जी ने धर्म की रक्षा के लिए अपना शीश न्यौछावर किया। गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना कर “चढ़दी कला” का संदेश दिया।

जत्थेदार जी ने संगत को समझाया कि यह परंपरा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और मानवीय मूल्यों पर आधारित है। शहीद बाबा सुखा सिंह और बाबा महताब सिंह ने इसी परंपरा को जीवित रखते हुए अपने प्राण न्यौछावर किए। उन्होंने संगत को संदेश दिया कि हमें अपने गुरुओं और शहीदों के उपदेशों से प्रेरणा लेकर जीवन में सच्चाई, सेवा और परोपकार के मार्ग पर चलना चाहिए।

बाबा मनमोहन सिंह बारनवाले ने युवाओं को नशा त्यागने और खेल-कूद में जुड़कर स्वस्थ जीवन जीने का संदेश दिया। उन्होंने कहा, ‘नशा व्यक्ति की सामाजिक, पारिवारिक और धार्मिक प्रवृत्तियों को नष्ट करता है।’

गुरुद्वारे के सेवादार बाबा जोगा सिंह और बाबा जग्गा सिंह ने इतिहास भी साझा किया। उन्होंने बताया कि 1739 में अफगान शासक नादिरशाह की सेना ने अत्याचार की सारी हदें पार कर दी थीं। लाहौर के जनरल जकरीया खां ने ‘मस्सेरंगड़’ को श्री हरमंदर साहिब का मुखी नियुक्त किया, जिसने दरबार को अय्याशी का अड्डा बना दिया। बुढ़ा दल के चौथे मुखी और श्री अकाल तख्त के जत्थेदार बाबा जस्सा सिंह अहलुवालिया ने बाबा सुखा सिंह और बाबा महताब सिंह को अमृतसर भेजा। दोनों वीरों ने मस्सेरंगड़ का वध कर उसका सिर बरछे पर टांगा और वापसी में हनुमानगढ़ में विश्राम किया।

अमृत संचार और सेवामेले के दौरान बुढ़ा दल से आए पाँच प्यारों ने 102 श्रद्धालुओं को गुरु वाले बनाया। संगतों के लिए जगह-जगह भंडारे और छबीलें सजाई गईं। शहीद भगत सिंह फाउंडेशन क्लब, श्री सिंधी समाज, गुरुद्वारा श्री कलगीधर साहिब इंदिरा कॉलोनी, गुरुद्वारा गुरुनानकसर प्रेमनगर सहित अनेक संस्थाओं ने ठंडी लस्सी, पकोड़े, जलजीरा, भेलपुरी और बूंदी के भंडारे लगाए। गुरुद्वारा प्रबंधक बाबा जोगा सिंह और बाबा जग्गा सिंह ने संगतों, पुलिस और जिला प्रशासन का धन्यवाद किया।



