






एमएल शर्मा.
आईजीएनपी यानी इंदिरा गांधी नहर आने के बाद इस इलाके की तकदीर व तस्वीर बदल गई। सिंचाई के लिए अब बारिश पर निर्भरता नहीं रही। खेत बारानी से ‘कमांड’ होने लगे, खुशहाली का आलम छा गया। लेकिन धीरे-धीरे यही प्रगति इसी पानी के चलते विनाश की जननी बन गई।

पंजाब की फैक्ट्रियों से निकला कैमिकल युक्त जल बिना किसी शोधन के सतलुज नदी के जरिए हरिके बैराज से सूबे की नहरों में धड़ल्ले से बदस्तूर डाला जा रहा है। यह पानी नहर में ‘जहर’ घोल रहा है। इससे भूमिपुत्रों की कृषि ऊपज तो बर्बाद होती ही है, साथ ही कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से ग्रसित होकर राजस्थान के वाशिंदे असमय ही काल का ग्रास बन रहे है। इलाके के लिए ‘जीवनदायिनी’ माने जाने वाली नहरें आज ‘जहर’ उगल रही हैं। हालात इतने बदतर है कि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के आदेश बेअसर हो गए है।

यह ‘जहरीला जल’ श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ सहित दर्जन भर जिलों में ‘मौत का सबब’ बनता जा रहा है। हैरानी की बात है कि वर्षों पुराना मामला होने के बावजूद भी कारगर कदम आज तक नहीं उठाए गए। राष्ट्र की संसद और राज्य की विधानसभा में यह मामला कई बार गूंजा, विरोध हुआ, समस्या के निराकरण हेतु आंदोलन हुए परन्तु अब लगने लगा है कि हुक्मरानों को इसके स्थाई समाधान से शायद कोई सरोकार ही नहीं है।

राजपूताना के ‘एग्रीकल्चर हब’ कहे जाने वाले जिलों के लिए यह पानी रूपी हलाहल ‘अभिशाप’ बन गया है। वजीरे आला सहित वजारत भी इस मामले में खास गंभीर नहीं है। वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की बजाए सरकार ने साल 2012 में हाइकोर्ट में इस मामले में रिट लगा दी। यह याचिका कई सालों तक राजस्थान हाईकोर्ट में पेंडिग चलती रही।

जानकारों की माने तो समाधान सरल है अगर सही नीयत हो तो। आखिर हम क्या मानें। इतने वक्त में दोनों राज्यों में सरकारें बदल गईं पर सियासत ज्यों की त्यों बरकरार है। जलीय जहर का प्रवाह अभी भी बरकरार है।

पंजाब क्षेत्र की हजारों फैक्ट्रियां इंदिरा गांधी नहर परियोजना के पानी को सरेआम प्रदूषित कर रही हैं। पंजाब के कई गांवों और नगरों के सीवरेज और करीब ढाई हजार से अधिक कल कारखानों का प्रदूषित अपशिष्ट सतलुज से इंदिरा गांधी नहर में गिरता है। जालंधर, लुधियाना और फगवाड़ा सहित कई जिलों की फैक्ट्रियों से निकला हजारों क्यूसेक जहरीला केमिकल पानी हरिके बैराज से राजस्थान की इंदिरा गांधी नहर में छोड़ा जा रहा है। पंजाब प्रदूषण बोर्ड की रिपोर्ट में इस तथ्य की पुष्टि करे हुए एक दशक बीत गया लेकिन प्रभावित लोग ठोस उपाय की बाट जोह रहे है।

गौरतलब है कि इंदिरा गांधी नहर परियोजना सिंचाई पानी के अलावा कई जिलों में पेयजल की आपूर्ति करने का मुख्य स्रोत है। किंतु पंजाब की फैक्ट्रियों से बहकर आ रहा केमिकल युक्त पानी यहां पेयजल को पूर्ण रूपेण अपेय कर रहा है। इस पानी में बैक्टीरिया, आर्सेनिक जैसे कैमिकल और अपशिष्ट मिले होते है जो अति गंभीर रोगों के जनक है। इतना ही नहीं नहरबंदी के बाद तो हालात और ज्यादा विकट हो जाते है। महीनों तक नहरों में आने वाला ‘काला पानी’ अवाम की जान सांसत में डालता है।

प्रख्यात फिजिशियन डॉ. गणेश अग्रवाल ‘भटनेर पोस्ट’ से कहते हैं, ‘अशुद्ध पेयजल का निरंतर सेवन स्वस्थ व्यक्ति के लीवर, किडनी, आंत को रोगग्रस्त करता है। क्षेत्र में कैंसर की बहुलता इसी गंदे पानी की देन है। इसमें आर्सेनिक जैसा जहरीला तत्व होता है जिसके सेवन से कैंसर का खतरा बहुत ही अधिक बढ़ जाता है।’ उधर, यही पानी भूमि की उर्वरक क्षमता को कम करता है, भूमि एवं फसलों के पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते है। विडंबना देखिए, आमजन के हलक को तर करने वाला पानी ही जहरीला। पानी जीवन की पहली दरकार है। गर वो भी विषैला, तो प्रगति की बातें बेमानी है। आजादी के करीब आठ दशक बीत रहे है, मंगल व चंद्रमा के चक्कर लग गए, पर शुद्ध पेयजल मयस्सर ना हो, तो कैसी उन्नति? प्रभावितों की गुहार ना सियासत सुन रही है और ना ही अफसर। हालांकि, ट्रीटमेंट प्लांट लगाकर प्रदूषित जल को स्वच्छ कर नहर में डालने की बातें हुई, पर बातों का क्या? अमल नहीं हुआ।

संत बलवीरसिंह सरीखे सामाजिक कार्यकर्ता ने इस मुद्दे को उठाया, किसानों ने आंदोलन का रास्ता अख्तियार किया, गाहे बगाहे विधानसभा में इसकी गूंज उठी, पर नतीजा ‘सेम टू सेम’। हे सरकार, अब तो चेतो।
-लेखक वरिष्ठ अधिवक्ता व समसामयिक मसलों पर स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं

