






डॉ. एमपी शर्मा.
आजकल लोग मन के रोगों के बारे में भी खुलकर बात करने लगे हैं। ऐसा ही एक रोग है आवेश-आवृत्ति विकार, जिसे लोग ‘बार-बार की आदत’ या ‘जबरदस्ती का रोग’ भी कहते हैं। जिस आदमी को यह रोग होता है, उसके मन में बार-बार अजीब-अजीब ख्याल आते हैं। उन ख्यालों से छुटकारा पाने के लिए वह बार-बार वही काम करता रहता है। उसे खुद भी मालूम रहता है कि यह सब बेवजह है, पर मन मानता ही नहीं।

इसके लक्षण
बार-बार हाथ धोना। चाहे कितनी बार हाथ धो ले, फिर भी गंदे लगते हैं। जाँच करते रहना। जैसे दरवाज़ा बंद किया या नहीं, गैस का चूल्हा बंद है या नहीं, यह बार-बार देखना। अत्यधिक सफाई करना। घर या सामान को घंटों रगड़-रगड़ कर साफ़ करते रहना। अजीब ख्याल आनर। भगवान, हिंसा या काम-वासना से जुड़े विचार आना और उनसे डर या शर्म महसूस करना। समानता पर अड़ जाना। किताबें, कपड़े, बर्तन सब बिल्कुल लाइन से और बराबर ही रखे जाएँ, तभी चौन मिलता है।

यकीनन, इस रोग से व्यक्ति की जिंदगी पर असर पड़ता है। रोज़मर्रा का काम बिगड़ जाता है। घरवाले परेशान हो जाते हैं कि वह एक ही काम क्यों दुहराता है। पढ़ाई और रोज़गार पर असर पड़ता है। मन में हमेशा चिंता और बेचौनी बनी रहती है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या यह पागलपन है? जवाब है, नहीं। यह पागलपन नहीं है। जैसे किसी को मधुमेह या ब्लड प्रेशर हो जाता है, वैसे ही यह भी एक रोग है।

इलाज कैसे होता है?
डॉक्टर को दिखाना सबसे ज़रूरी है। सलाह और समझाईश की चिकित्सा यानी धीरे-धीरे रोगी को सिखाया जाता है कि मन के ख्यालों पर कैसे काबू पाया जाए। कुछ दवाएँ मस्तिष्क के रसायनों को संतुलित करती हैं और आराम मिलता है। घरवालों का साथ जरूरी है। रोगी को डाँटना या शर्मिंदा करना गलत है। उसे प्यार और सहारा देना चाहिए।

बेशक, यह कमजोरी नहीं है, एक रोग है। समय पर इलाज हो जाए तो आदमी बिल्कुल सामान्य जीवन जी सकता है। अगर आपके आस-पास किसी को यह रोग है, तो उसे धैर्य और प्यार से संभालें।

अंत में यही समझिए, यह रोग छुपाने की चीज़ नहीं, बल्कि दिखाने और ठीक कराने की है। जैसे बुखार आने पर डॉक्टर के पास जाते हैं, वैसे ही मन के रोग में भी इलाज ज़रूरी है। समय रहते देखभाल और दवा मिल जाए तो आदमी फिर से हँसते-खेलते जीवन जी सकता है।
-लेखक सीनियर सर्जन और आईएमए राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष हैं




