






डॉ. संतोष राजपुरोहित.
आज जब हम शिक्षक दिवस मना रहे हैं, तब शिक्षक की भूमिका केवल ज्ञान के संप्रेषक के रूप में नहीं, बल्कि विद्यार्थियों के जीवन-निर्माता के रूप में देखने की आवश्यकता है। शिक्षक केवल किताबों के पन्नों से तथ्य और सूत्र याद कराने वाले व्यक्ति नहीं हैं, बल्कि वे वह व्यक्तित्व हैं जो बच्चों को बड़े सपने दिखाते हैं, उन सपनों को पाने योग्य बनने की राह सिखाते हैं और सबसे महत्त्वपूर्ण असफलताओं का सामना करने का साहस प्रदान करते हैं।

सफलता पाने का मंत्र तो हर कोई सिखा सकता है, लेकिन असफलता से लड़ने का हौसला, गिरकर भी उठने की प्रेरणा और जीवन को नए दृष्टिकोण से देखने का नजरिया वही सच्चा शिक्षक दे सकता है। आज के तकनीकी युग में, जहाँ कृत्रिम बुद्धिमत्ता तेजी से शिक्षा के क्षेत्र में प्रवेश कर रही है, वहाँ यह खतरा बढ़ रहा है कि शिक्षा केवल यांत्रिक बनकर रह जाए। लेकिन शिक्षक की असली पहचान तभी है जब वह अपने विद्यार्थियों में केवल ज्ञान नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनाएँ, सहानुभूति और सामाजिक जिम्मेदारी भी जाग्रत करे।

शिक्षण का उद्देश्य केवल दक्षता पैदा करना नहीं होना चाहिए, बल्कि मनुष्य को मनुष्य बनाए रखना भी उतना ही जरूरी है। अगर विद्यार्थी सिर्फ रोबोट की तरह काम करें, सोचने और महसूस करने की क्षमता खो दें, तो शिक्षा अधूरी रह जाएगी। एक सच्चा शिक्षक विद्यार्थियों को यह विश्वास दिलाता है कि वे अपने भीतर असीम संभावनाएँ रखते हैं और यदि कभी असफलता भी मिले तो वह अंत नहीं, बल्कि एक नए आरंभ का अवसर है।

विडंबना यह है कि आज पढ़ाने और पढ़ने वाले दोनों ही धीरे-धीरे किताबों से दूर होते जा रहे हैं। डिजिटल माध्यम ने जहाँ ज्ञान को सहज और त्वरित उपलब्ध कराया है, वहीं किताबों से मिलने वाला गहराईपूर्ण चिंतन और धैर्य कम होता जा रहा है। छात्र त्वरित उत्तरों की तलाश में रहते हैं और शिक्षक भी अक्सर तकनीक पर निर्भर होते जा रहे हैं। इस प्रवृत्ति से शिक्षा का मानवीय और बौद्धिक पक्ष प्रभावित हो रहा है। किताबों का साथ केवल ज्ञान ही नहीं देता, बल्कि वह सोचने, कल्पना करने और जीवन को गहराई से समझने की क्षमता भी प्रदान करता है।

इसके अतिरिक्त, यह भी स्वीकार करना होगा कि शिक्षक वर्ग आर्थिक दबावों से अछूता नहीं रहा है। बढ़ती जीवन-यापन लागत, सीमित आय और सामाजिक अपेक्षाएँ शिक्षकों के कार्य-उत्साह को प्रभावित करती हैं। जबकि एक शिक्षक का मन तभी रचनात्मक रूप से कार्य कर सकता है जब उसे आर्थिक असुरक्षा से मुक्ति मिले। समाज और सरकार का दायित्व है कि वे शिक्षक को केवल ज्ञानदाता नहीं, बल्कि भविष्य निर्माता के रूप में देखें और उन्हें सम्मान के साथ-साथ स्थिरता भी प्रदान करें।

आज शिक्षक दिवस पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम शिक्षा को केवल सूचना तक सीमित न रखकर उसे मानवीय संवेदनाओं का माध्यम बनाएँ। शिक्षक को वह स्थान मिले जहाँ वे केवल पाठ्यक्रम पूरा करने के दबाव से मुक्त होकर विद्यार्थियों को जीवन जीने की कला सिखा सकें। विद्यार्थियों के प्रति सहानुभूति, संवेदनशीलता और प्रेरणा का भाव ही शिक्षक को वास्तव में ‘शिक्षक’ बनाता है।

आख़िरकार, एक सच्चे शिक्षक का कार्य है बच्चों के भीतर छिपे हुए विश्वास को जगाना, उनके जीवन की राह में मार्गदर्शक बनना और उन्हें यह सिखाना कि जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि केवल सफलता नहीं, बल्कि असफलताओं का सामना कर उनसे ऊपर उठने की क्षमता है। यही गुण शिक्षक को मशीन नहीं, बल्कि युग-निर्माता बनाता है।
-लेखक रयान कॉलेज हनुमानगढ़ के प्राचार्य हैं



