






भटनेर पोस्ट ब्यूरो.
राजस्थान के सीमावर्ती इलाकों में जल प्रदूषण का खतरा गहराता जा रहा है। पंजाब की फैक्ट्रियों से निकलने वाला रसायनयुक्त अपशिष्ट जल सतलुज नदी के रास्ते हरिके बैराज होते हुए राजस्थान की नहरों तक पहुंच रहा है। इस कारण न सिर्फ जल स्रोत प्रदूषित हो रहे हैं बल्कि पेयजल की गुणवत्ता पर भी प्रश्नचिह्न लगने लगे हैं। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए राजस्थान सरकार ने अब सख्त कदम उठाने शुरू कर दिए हैं।

राजस्थान विधानसभा में प्रश्नकाल के दौरान जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी मंत्री कन्हैयालाल चौधरी ने स्पष्ट किया कि पंजाब से प्रवेश करने वाले अपशिष्ट जल की रोकथाम और शोधन के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि सतलुज नदी के जल संग्रहण क्षेत्र में इस समय 57 सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) संचालित हो रहे हैं। इसके अतिरिक्त 10 नए एसटीपी का निर्माण कार्य प्रगति पर है। इन संयंत्रों का उद्देश्य प्रदूषित जल को रोकना और शुद्ध करना है, ताकि यह पानी राजस्थान की नहरों और नदियों में प्रवेश न कर सके।

मंत्री चौधरी ने यह भी जानकारी दी कि इंदिरा गांधी फीडर और बीकानेर नहर से आने वाले पानी की रियल टाइम मॉनिटरिंग की जाती है। हर एक घंटे में प्राप्त होने वाली रिपोर्ट राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जल संसाधन विभाग के हनुमानगढ़ कार्यालय में प्रदर्शित की जाती है। अब तक की रिपोर्टों के अनुसार पेयजल मानक के अनुरूप पानी उपलब्ध हो रहा है, किंतु चुनौती निरंतर बनी हुई है।

मंत्री ने लिखित जवाब में यह भी स्पष्ट किया कि जालंधर की फैक्ट्रियों से निकलने वाला रसायनयुक्त पानी सीधे सतलुज नदी में गिरता है। यह पानी हरिके बैराज के बाद राजस्थान की नहर प्रणाली में प्रवेश कर जाता है। कई बार राज्य सरकार ने पंजाब सरकार से आग्रह किया है कि प्रदूषित जल को शोधन के बाद ही छोड़ा जाए, परंतु समस्या पूरी तरह से हल नहीं हुई है।
जल प्रदूषण के इस मुद्दे पर अब केंद्रीय एजेंसियों ने भी संज्ञान लिया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को सख्त निर्देश जारी किए हैं। वहीं, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने मामले की गंभीरता को देखते हुए एक मॉनिटरिंग कमेटी का गठन किया है।

इस कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर एनजीटी ने पंजाब सरकार को पर्याप्त संख्या में ईटीपी, सीईटीपी और एसटीपी स्थापित करने और उनके नियमित संचालन को सुनिश्चित करने का आदेश दिया है। साथ ही, पंजाब के मुख्य सचिव को इन कार्यों की मासिक समीक्षा करने के भी निर्देश दिए गए हैं।

राजस्थान की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए नहरें यहां जीवन रेखा की तरह काम करती हैं। इंदिरा गांधी नहर और बीकानेर नहर के पानी पर लाखों लोगों की पेयजल आपूर्ति और कृषि सिंचाई निर्भर करती है। ऐसे में अगर यह पानी प्रदूषित होता है तो न सिर्फ स्वास्थ्य पर बल्कि कृषि उत्पादन पर भी गहरा असर पड़ सकता है।

राजस्थान सरकार की चिंता यही है कि राज्य की सीमाओं से बाहर उत्पन्न होने वाला प्रदूषण सीधे यहां की नदियों और नहरों के जरिए जनता तक न पहुंचे। यही कारण है कि राज्य लगातार पंजाब से आग्रह कर रहा है कि औद्योगिक अपशिष्ट जल को ट्रीटमेंट के बाद ही छोड़ा जाए। विशेषज्ञों का मानना है कि जल प्रदूषण की समस्या किसी एक राज्य तक सीमित नहीं है। नदियां सीमाओं से परे जाकर बहती हैं और उनका प्रभाव भी व्यापक होता है। इसलिए, पंजाब और राजस्थान के बीच समन्वय के साथ-साथ केंद्र सरकार और एनजीटी की निगरानी इस समस्या के स्थायी समाधान के लिए बेहद जरूरी है। राजस्थान सरकार ने अपने स्तर पर मॉनिटरिंग और शोधन संयंत्रों के जरिए कदम उठाए हैं, लेकिन वास्तविक सफलता तभी मिलेगी जब प्रदूषित जल का स्रोत यानी पंजाब की फैक्ट्रियों से निकलने वाला अपशिष्ट नियंत्रित होगा।



