




भटनेर पोस्ट ब्यूरो.
यह पेशा केवल ज्ञान और कौशल का नहीं, बल्कि संवेदनाओं का भी है। पशुचिकित्सा, जहाँ जीवन और मूक पीड़ा के बीच संवाद की सबसे कठिन कला निभानी होती है। इंसान अपनी वेदना शब्दों में ढाल लेता है, रोकर या कहकर बता देता है कि उसे क्या तकलीफ़ है। लेकिन पशु? उनके पास न भाषा है, न शब्द। वे केवल आँखों की नमी, व्यवहार के बदलाव और शरीर की थरथराहट से अपनी व्यथा प्रकट करते हैं। इस मौन पुकार को समझना और उसका उपचार ढूंढना ही असल चुनौती है।
डॉ. प्रेम धींगड़ा ‘भटनेरी’ इस कठिन मार्ग पर चलते हुए केवल चिकित्सक ही नहीं, बल्कि संवेदनाओं के साधक बन गए हैं। शायद यही वजह है कि उनका मन शायरी में भी रम गया। शायर दिल की धड़कनों को लफ़्ज़ों में ढाल देता है और चिकित्सक उन धड़कनों के पीछे छिपे दर्द को पहचान लेता है। डॉ. प्रेम धींगड़ा दोनों भूमिकाओं में अद्भुत संतुलन साधते हैं। उनके भीतर का शायर उनके भीतर के चिकित्सक को और अधिक मानवीय बना देता है। यही मानवीयता उन्हें उन पशुओं की तकलीफ़ समझने में मदद करती है, जो अपना दर्द कह नहीं सकते।

उनके इसी समर्पण और कर्तव्यनिष्ठा को जिला प्रशासन ने भी पहचाना। स्वाधीनता दिवस के मौके पर जब तिरंगे की शान आकाश को चूम रही थी, तभी जिला स्तरीय समारोह में डॉ. प्रेम धींगड़ा को सम्मानित किया गया।
मंच पर जिला कलक्टर डॉ. खुशाल यादव, पुलिस अधीक्षक हरिशंकर, विधायक गणेशराज बंसल, भाजपा नेता अमित चौधरी और भाजपा जिलाध्यक्ष प्रमोद डेलू मौजूद थे। सबने मिलकर डॉ. धींगड़ा को स्मृति-चिह्न भेंट कर उनके योगदान को सराहा। यह सम्मान केवल एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि उस संवेदनशील दृष्टिकोण का है जो मूक प्राणियों को भी परिवार का हिस्सा मानता है।

कागद फाउंडेशन, हनुमानगढ़ की अध्यक्ष भगवती पुरोहित, उपाध्यक्ष राजेश चड्ढ़ा, महासचिव नरेश मेहन, सह सचिव विरेंद्र छापोला, कोषाध्यक्ष डॉ. संतोष राजपुरोहित और शायर अदरीस खान सहित कई प्रबुद्धजनों ने प्रशासन के निर्णय को स्वागतयोग्य बताया और कहा कि समाज के लिए यह संदेश है कि दायित्व निभाने वालों को कभी अनदेखा नहीं किया जाता।
डॉ. प्रेम धींगड़ा का यह सम्मान हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि जीवन की असली सेवा केवल मनुष्यों तक सीमित नहीं है। पशु भी इस सृष्टि के उतने ही महत्वपूर्ण अंग हैं। उनकी रक्षा, उनका उपचार और उनके दुख को समझना भी उतना ही ज़रूरी है। जब कोई चिकित्सक इस कार्य को सिर्फ़ पेशे के तौर पर नहीं, बल्कि मानवता के विस्तार के रूप में निभाता है, तो उसका योगदान साधारण नहीं रह जाता।

यही कारण है कि डॉ. प्रेम धींगड़ा की शख्सियत प्रेरणा का स्रोत बन गई है। उनके हाथों की मरहम में विज्ञान है, तो दिल की धड़कनों में शायरी की मुलायमियत। यही संगम उन्हें विशिष्ट और असाधारण बनाता है। और यही संगम उन्हें उस पंक्ति में खड़ा करता है जहाँ सेवा केवल कर्म नहीं, बल्कि एक कविता बन जाती है, मूक प्राणियों की पीड़ा की कविता, जिसे वे चुपचाप सुनते हैं और उसका उपचार खोज निकालते हैं।
जाने-माने शायर राजेश चड्ढ़ा कहते हैं, ‘यह सम्मान न केवल डॉ. प्रेम धींगड़ा के जीवन का, बल्कि उस अनकहे भाव का उत्सव है, जिसमें पशुओं की आँखों में झांककर उनके दर्द को महसूस किया जाता है। यह उस संवेदना की जीत है, जो शब्दों से नहीं, बल्कि मौन से संवाद करती है।’


