



भटनेर पोस्ट डेस्क.
भारतीय राजनीति के बेबाक और साहसी स्वर, पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का मंगलवार को निधन हो गया। वे 79 वर्ष के थे। उन्होंने दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में दोपहर 1.12 बजे अंतिम सांस ली। लंबे समय से वे किडनी संबंधी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे थे और आईसीयू में भर्ती थे। उनके निधन की जानकारी उनके आधिकारिक एक्स (पूर्व ट्विटर) हैंडल पर साझा की गई। विडंबना देखिए, ठीक उसी तारीख़ 5 अगस्त को उनका निधन हुआ, जब 2019 में केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया था। उस ऐतिहासिक क्षण के समय जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के रूप में सत्यपाल मलिक की भूमिका सबसे निर्णायक और संवेदनशील मानी जाती है।
सत्यपाल मलिक भारतीय राजनीति के उन विरले चेहरों में शामिल रहे, जिन्होंने संवैधानिक पदों पर रहते हुए भी अपने विचारों की स्वतंत्रता को बरकरार रखा। सत्ता के करीब रहते हुए भी उन्होंने सत्ता से असहमति जताने का साहस दिखाया। वे अक्सर कहा करते थे-‘मैंने कभी झूठ बोलकर पद नहीं बचाया। सच बोलने की आदत है, इसलिए अकेला हूं।’ उनका राजनीतिक सफर छात्र राजनीति से शुरू हुआ। 1974 में चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय क्रांति दल से उत्तर प्रदेश विधानसभा पहुंचे। इसके बाद वे राज्यसभा सदस्य (1980-1989), अलीगढ़ से लोकसभा सांसद (1989) रहे और विभिन्न कालखंडों में कांग्रेस, लोकदल और अंततः भाजपा से जुड़े।

मलिक ने बिहार (2017-18), जम्मू-कश्मीर (2018-19), गोवा (2019-20) और मेघालय (2020-22) के राज्यपाल के रूप में सेवा दी। हालांकि हर बार वे केवल औपचारिक भूमिका में नहीं रहे, बल्कि संवैधानिक मर्यादाओं में रहते हुए उन्होंने जनहित के मुद्दों को उठाने में कोई संकोच नहीं किया।
मुख्य विवादों में सत्यपाल मलिक की बेबाक भूमिका
पुलवामा हमला: मलिक ने दावा किया था कि यदि सरकार ने उनकी सलाह मानते हुए जवानों को एयरलिफ्ट किया होता, तो फरवरी 2019 का पुलवामा हमला टल सकता था।
किसान आंदोलन: उन्होंने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन का खुलकर समर्थन किया और केंद्र सरकार को किसान विरोधी बताया।
भ्रष्टाचार के आरोप: राज्यपाल रहते हुए मलिक ने कुछ मंत्रालयों में भ्रष्टाचार के मामलों को उजागर किया और कहा कि वह इन मुद्दों पर चुप नहीं रह सकते।
इन स्पष्ट बयानों की वजह से केंद्र सरकार से उनके संबंधों में खटास आ गई, खासकर 2020-21 के दौरान। उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के निवासी सत्यपाल मलिक जाट समाज का एक प्रभावशाली चेहरा थे। किसानों, युवाओं और ग्रामीण भारत के अधिकारों के लिए वे जीवन भर संघर्षरत रहे। उन्होंने अपने लंबे सार्वजनिक जीवन में विचारों से कोई समझौता नहीं किया।

राजनीतिक जगत में शोक की लहर
सत्यपाल मलिक के निधन की खबर के बाद राजनीतिक हलकों में गहरा शोक छा गया। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा-‘कुछ दिन पहले ही मैं दिल्ली के अस्पताल में उनसे मिलने गया था। उनका जाना देश की राजनीति में सच्चाई और जनप्रतिबद्धता की एक परंपरा के अंत जैसा है।; कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए लिखा-‘‘सत्यपाल जी ने तानाशाही, दमन और किसान विरोधी नीतियों का जीवनपर्यंत विरोध किया। वे ईमानदारी और स्पष्टवादिता के प्रतीक थे। उनका अविस्मरणीय योगदान राजनीति में हमेशा याद किया जाएगा।’

अंतिम दर्शन और विदाई
सूत्रों के अनुसार, बुधवार सुबह दिल्ली में उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा। इसके बाद उनके पैतृक गांव हिन्डल (बागपत, उत्तर प्रदेश) में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। सत्यपाल मलिक अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका जीवन, विचार, और सत्य के पक्ष में खड़े होने की परंपरा आने वाली पीढ़ियों को साहस देती रहेगी।

