




भटनेर पोस्ट डेस्क.
न्याय के मंदिर में जब हरियाली की सुगंध घुलती है, तब केवल वाद-विवाद नहीं, जीवन और पर्यावरण का संवाद भी परवान चढ़ता है। हनुमानगढ़ जिला न्यायालय परिसर एक अनूठे और प्रेरणास्पद दृश्य का साक्षी बना, जब ‘हरियालो राजस्थान एवं हरा-भरा हनुमानगढ़’ अभियान के तहत बार संघ की ओर से न्यायालय परिसर में सघन पौधारोपण कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ जिला एवं सेशन न्यायाधीश तनवीर चौधरी, एनडीपीएस न्यायालय के न्यायाधीश पृथ्वीपाल सिंह व बार संघ अध्यक्ष नरेंद्र माली ने नीम के पावन पौधे को रोपित कर किया। नीम के इस प्रथम पौधे के साथ ही 31 विभिन्न प्रजातियों के पौधे न्यायालय परिसर में लगाए गए, जिनकी रक्षा के लिए ट्री गार्ड्स भी लगाए गए। यह अभियान मानव उत्थान सेवा समिति के सहयोग से संभव हो सका।

जिला एवं सेशन न्यायाधीश तनवीर चौधरी ने पौधारोपण की आवश्यकता पर गहरी संवेदना के साथ कहा, ‘आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है पर्यावरण संरक्षण। यदि हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को शुद्ध वायु, संतुलित जलवायु और सुरक्षित जीवन देना चाहते हैं, तो पौधारोपण से बेहतर और कोई विकल्प नहीं। आज ग्लोबल वार्मिंग की भयावहता हमारे सामने है, कहीं सूखा, कहीं बाढ़, तो कहीं अतिवृष्टि… इस असंतुलन को अगर कुछ साध सकता है, तो वह है, वृक्षों की हरियाली।’ दरअसल, डीजे तनवीर चौधरी की यह बात केवल एक औपचारिक वक्तव्य नहीं, बल्कि वर्तमान समय की पर्यावरणीय त्रासदी पर एक विचारशील हस्तक्षेप था।
बार संघ अध्यक्ष नरेंद्र माली एवं वरिष्ठ अधिवक्ता जोधा सिंह भाटी ने कहा कि हर पौधे को अपने बच्चों की तरह पालें, उसे पानी दें, उसकी रक्षा करें, तभी इस प्रयास को सार्थकता मिलेगी। जब एक वकील कानून की रक्षा करता है, तो वही भाव अगर पेड़ों की रक्षा में भी हो जाए, तो न्याय का दायरा केवल मानव समाज तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि समस्त प्रकृति तक विस्तारित हो जाएगा।

इस मौके पर सीजीएम सुनीता बेड़ा, ग्राम न्यायालय के न्यायाधीश अविनाश चांगल, मुनीश एरन, पूर्व बार संघ अध्यक्ष मंजिंदर सिंह लेघा, मनेष तंवर, अनुज डोडा, दिनेश राव, राजेन्द्र बेनीवाल, मोहित एरन, मनीष शर्मा, जगदीश चंद्र चलाना, बार संघ सचिव प्रकाश रोझं, कोषाध्यक्ष राजीव शर्मा, पुस्तकालय अध्यक्ष लोकेश शर्मा, और गणेश गिल्होत्रा सहित अनेक अधिवक्ता एवं न्यायिक अधिकारी तथा मानव उत्थान सेवा समिति अध्यक्ष लाधू सिंह भाटी सहित उनकी टीम के प्रतिनिधि उपस्थित रहे।
आयोजन को देखने से लगा कि यह सिर्फ पौधे रोपने तक सीमित नहीं था, यह उस विचार की व्याख्या थी कि न्याय और प्रकृति का रिश्ता बेहद गहरा है। एक जहां समाज में संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है, वहीं दूसरी पृथ्वी पर जीवन के संतुलन के लिए। हनुमानगढ़ की न्यायपालिका और अधिवक्ताओं ने यह दिखा दिया कि जब विचारशील लोग पर्यावरण संरक्षण की बागडोर थामते हैं, तो वह केवल एक ‘प्रोटोकॉल’ नहीं, बल्कि पर्यावरणीय यज्ञ बन जाता है।






