



भटनेर पोस्ट पॉलिटिकल डेस्क.
राजस्थान की सियासत एक बार फिर दिलचस्प मोड़ पर है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद राजनीतिक समीकरणों की बिसात फिर से बिछाई जा रही है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अलग-अलग मुलाकातों ने इन अटकलों को और बल दिया है कि भाजपा राजस्थान में नेतृत्व और जातीय संतुलन को लेकर बड़े निर्णयों की ओर बढ़ रही है। क्या वसुंधरा राजे का राजनीतिक वनवास समाप्त होने जा रहा है? क्या उन्हें केंद्र में बड़ी भूमिका मिलने जा रही है? क्या कैबिनेट विस्तार और संगठनात्मक फेरबदल के जरिए पार्टी आंतरिक गुटबाजी को साध पाएगी? इन सभी प्रश्नों के बीच भाजपा की रणनीति जाट समुदाय के पुनः भरोसे और सत्ता संतुलन के समायोजन की स्पष्ट झलक देती है।
सूत्रों के मुताबिक, राजे लंबे समय से अपने गुट के नेताओं को मंत्री पद और संगठनात्मक नियुक्तियों में समुचित भागीदारी दिलवाने की मांग कर रही थीं। इस बीच, जब उपराष्ट्रपति पद से जगदीप धनखड़ का इस्तीफा हुआ तो चर्चाओं ने और जोर पकड़ लिया कि क्या भाजपा इस पद के लिए राजस्थान से ही किसी नेता को आगे कर सकती है? धनखड़ से पहले भी इस पद के लिए वसुंधरा राजे का नाम चल चुका है। अब जबकि फिर से यह पद खाली हुआ है, तो एक बार फिर वसुंधरा को केंद्रीय भूमिका देने की अटकलें लगाई जा रही हैं। इसी संदर्भ में यह मुलाकात अहम मानी जा रही है।

उपराष्ट्रपति पद की रेस में एक और नाम ओम माथुर का भी जोरशोर से चर्चा में आना वसुंधरा समर्थकों के लिए असहज स्थिति बना सकता है। माथुर और वसुंधरा के बीच की राजनीतिक खाई किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में अगर पार्टी शीर्ष नेतृत्व वसुंधरा की सहमति के बिना माथुर को आगे बढ़ाता है, तो इससे अंदरूनी टकराव और बढ़ सकता है। भाजपा आलाकमान के लिए यही सबसे बड़ी चुनौती है, कैसे दोनों बड़े नेताओं के बीच संतुलन कायम रखा जाए और साथ ही जाट समुदाय जैसे प्रभावशाली वोट बैंक को भी साधा जाए।
इस पूरे घटनाक्रम का सीधा असर राजस्थान में संभावित मंत्रिमंडल विस्तार पर भी पड़ता दिख रहा है। प्रदेश में भाजपा सरकार बने करीब डेढ़ साल हो चुके हैं, लेकिन अब तक मंत्रिमंडल का पूर्ण विस्तार नहीं हुआ है। भजनलाल शर्मा की पीएम मोदी से मुलाकात को इस प्रक्रिया के प्रारंभिक संकेत के रूप में देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि वसुंधरा गुट के कुछ नेताओं को मंत्रिमंडल में स्थान देकर संतुलन साधा जाएगा। इसके अलावा, भाजपा संगठन में भी बदलाव की चर्चा चल रही है। राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को लेकर वसुंधरा का नाम फिर से चर्चा में है, हालांकि यह अभी केवल अटकलों तक सीमित है। फिर भी यह स्पष्ट है कि पार्टी उन्हें किसी न किसी बड़ी जिम्मेदारी में शामिल करना चाहती है, चाहे वह दिल्ली की हो या जयपुर की।

जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद भाजपा के पास अब कोई बड़ा जाट चेहरा नहीं बचा है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या पार्टी जाट समाज से ही अगला उपराष्ट्रपति बनाएगी या प्रदेश की राजनीति में जाट समुदाय को संतुलित करने के लिए अन्य उपायों पर विचार करेगी? वसुंधरा राजे की इस समुदाय पर विशेष पकड़ मानी जाती है। पार्टी यदि राजे को केंद्रीय भूमिका देती है या उनके कहे अनुसार जाट नेताओं को मंत्रीमंडल या संगठन में स्थान देती है, तो इससे जाटों की नाराजगी को कुछ हद तक शांत किया जा सकता है।

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की सक्रियता भी इस पूरे परिदृश्य में उल्लेखनीय है। दिल्ली दौरे के दौरान उन्होंने न केवल पीएम मोदी से मुलाकात की बल्कि केंद्रीय मंत्रियों शिवराज सिंह चौहान, मनोहर लाल खट्टर और सीआर पाटिल से भी अलग-अलग मुलाकातें कर राज्य की योजनाओं पर चर्चा की। यह दर्शाता है कि वे प्रदेश के विकास और केंद्र के सहयोग को लेकर पूरी तरह सजग हैं। मुलाकात के बाद भजनलाल ने कहा, हमारी डबल इंजन की सरकार लगातार राजस्थान को आदर्श राज्य बनाने की दिशा में कार्य कर रही है। जहां प्रत्येक किसान, युवा, महिला, गरीब और वंचित वर्ग को न्याय मिल रहा है। भजनलाल इस वक्त अपनी छवि को मजबूत करना चाह रहे हैं, साथ ही कैबिनेट विस्तार में सभी गुटों को संतुलित कर एकता का संदेश देना चाहते हैं।
