


भटनेर पोस्ट पॉलिटिकल डेस्क.
‘अगर ईश्वर की कृपा रही तो अगस्त 2027 में रिटायर हो जाऊंगा’।
ये शब्द थे उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के, जो उन्होंने महज़ 11 दिन पहले कहे थे। लेकिन अब वे न रिटायर होंगे और न ही 2027 तक इस पद पर रहेंगे। क्योंकि 21 जुलाई की रात, जब संसद मानसून सत्र के हंगामे से गूंज रही थी, तब धनखड़ ने अचानक अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंप दिया। यह इस्तीफा केवल एक संवैधानिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति की एक संकेत भाषा है, जिसे पढ़ना अब हर राजनीतिक विश्लेषक और नागरिक की जरूरत है।
दरअसल, धनखड़ ने जब रात को त्यागपत्र सौंपा, तो दिन भर उन्होंने उस सत्र में स्वयं उपस्थित रहकर सदन की कार्यवाही भी संचालित की, जिससे यह संकेत मिल रहा था कि वे पूरी तरह सक्रिय और स्वस्थ हैं। ऐसे में जब इस्तीफे का कारण ‘सेहत’ बताया गया, तो सबसे पहले विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो गए।
धनखड़ के इस्तीफे को लेकर जो सबसे बड़ा राजनीतिक कोण उभरकर सामने आया है, वह है न्यायपालिका के प्रति उनके तीखे और मुखर तेवर। वे कई बार सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों और फैसलों को लेकर सार्वजनिक मंचों पर सवाल उठा चुके थे। राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के मुद्दे पर उनकी टिप्पणियां न्यायपालिका के भीतर भी असहजता पैदा कर चुकी थीं। पिछले साल विपक्ष ने उनके खिलाफ महाभियोग नोटिस तक देने का ऐलान कर दिया था। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि हाल के घटनाक्रमों के बाद सत्ता और न्यायपालिका के बीच जारी तनाव में एक संतुलन बनाने की जरूरत महसूस की गई, और धनखड़ की ‘बलि’ देकर संदेश देने का प्रयास किया गया कि ‘संविधान सर्वाेपरि है’।
सूत्रों का कहना है कि सत्ता का शीर्ष उनसे खफा तो था लेकिन अचानक उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया जाएगा, यह संभव नहीं लग रहा था। कयास लगाए जा रहे कि दिन में राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान केंद्रीय मंत्री जेपी नड्ढ़ा ने जिस लहजे में ‘आसन’ के ‘विशेषाधिकार का हनन’ किया, वहां पर धनखड़ का धैर्य जवाब दे गया। दरअसल, नड्ढ़ा जब बोलने के लिए खड़े हुए तो विपक्षी सांसदों ने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर सरकार पर हमला बोला। नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपने चुटीले अंदाज में सरकार की कमजोर नस को दबाना शुरू कर दिया। इससे नड्ढ़ा आपा खो बैठे। उन्होंने खुलेआम कह दिया कि ‘विपक्ष सुन ले, उनकी बातें सदन की रिकार्ड में नहीं आएंगी, वही बातें आएंगी जो मैं बोलूंगा।’ देखा जाए तो यह ‘आसन’ की अवमानना थी और संभवतः धनखड़ उखड़ गए। हालांकि सदन में उन्होंने कोई प्रतिवाद नहीं किया लेकिन सूत्रों का कहना है कि सदन की कार्यवाही समाप्त होने के बाद उन्होंने सत्ता के शीर्ष तक अपनी नाराजगी जताई तो वहां से दो टूक जवाब आया कि ‘फिर इस्तीफा दे दो, कल नहीं आज और आज नहीं अभी।’ चर्चा यह भी है कि इस्तीफे का प्रारूप तीन बार लिखा गया। दो बार बाहर से और अंतिम बार धनखड़ के कार्यालय में। धनखड़ ने तो सिर्फ हस्ताक्षर ही किया है।
सूत्रों की मानें तो यह इस्तीफा स्वेच्छा से नहीं दिया गया, बल्कि उन्हें आज और अभी इस्तीफा देने के लिए कहा गया। इस कथन के पीछे दो बड़े सवाल हैं, किसने कहा? क्यों कहा? हालांकि किसी भी पक्ष ने इस पर खुलकर कुछ नहीं कहा, लेकिन यह तय है कि यह फैसला महज़ व्यक्तिगत नहीं था। यह एक राजनीतिक-संवैधानिक संतुलन का हिस्सा था।
धनखड़ ने इस्तीफे में लिखा
“सेहत को प्राथमिकता देने और डॉक्टर की सलाह को मानने के लिए मैं अपने पद से इस्तीफा देता हूं। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति का सहयोग अविस्मरणीय रहा। यह देश की प्रगति के कालखंड में सेवा करने का सौभाग्य रहा।”
ये शब्द जितने औपचारिक हैं, उतने ही सियासी संदेशों से भी भरे हुए हैं। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की प्रशंसा दरअसल यह दर्शाती है कि उन्होंने संवैधानिक मर्यादा का पालन करते हुए विदाई ली है, पर उनके भीतर कोई विद्रोह नहीं, बल्कि स्वीकार्यता है।
कौन हो सकता है उत्तराधिकारी ?
अब देश के अगले उपराष्ट्रपति को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। जेडीयू सांसद और राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश सबसे प्रमुख नाम के तौर पर सामने आ रहे हैं। उनके अनुभव और राजनीतिक संतुलन को देखते हुए उन्हें सर्वसम्मति से चुना जाना संभव है। हालांकि, चूंकि उपराष्ट्रपति के पद के लिए संविधान में कार्यवाहक उपराष्ट्रपति का प्रावधान नहीं है, इसलिए जब तक नया चुनाव नहीं होता, तब तक सभापति की भूमिका उपसभापति निभाएंगे, लेकिन वे उपराष्ट्रपति नहीं माने जाएंगे।
राजनीति की दिशा किस ओर?
धनखड़ का इस्तीफा सत्ता के आंतरिक समीकरणों में बदलाव का संकेत है। सरकार अपने विरुद्ध बनते नैरेटिव को संतुलित करने के लिए कुछ चेहरे बदल सकती है। न्यायपालिका को यह संदेश देना कि उसकी प्रतिष्ठा सर्वाेपरि है, इस इस्तीफे के जरिए एक रणनीतिक प्रयास हो सकता है। विपक्ष को एक ‘मुद्दा’ मिला है, लेकिन अगर अगला उपराष्ट्रपति सर्वमान्य चेहरा होता है, तो उसे भी काउंटर किया जा सकता है।
