




डॉ. एमपी शर्मा.
‘डॉक्टर साहब, मेरे बच्चे की आंखें और त्वचा पीली क्यों हैं?’ यह सवाल लगभग हर नवजात शिशु के माता-पिता कभी न कभी जरूर पूछते हैं। जन्म के पहले सप्ताह में शिशु की आंखों और त्वचा का पीला पड़ना एक सामान्य प्रक्रिया हो सकती है, जिसे हम ‘नवजात पीलिया’ के नाम से जानते हैं। हालांकि यह अक्सर सामान्य होता है, लेकिन कुछ मामलों में यह गंभीर रूप भी ले सकता है। आइए सरल शब्दों में समझते हैं कि नवजात पीलिया क्या है, क्यों होता है, कब चिंता की बात है, और किस समय डॉक्टर से तुरंत संपर्क करना चाहिए।
क्या है सामान्य नवजात पीलिया?
जन्म के 2 से 4 दिन बाद नवजात के शरीर में हल्का पीलापन दिखना सामान्य है। यह इस कारण होता है कि शिशु के शरीर में जन्म के बाद पुराने लाल रक्त कोशिकाएं टूटती हैं और बिलीरुबिन नामक पदार्थ बनता है। चूंकि नवजात का लिवर अभी पूरी तरह परिपक्व नहीं होता, वह बिलीरुबिन को शरीर से बाहर नहीं निकाल पाता, जिससे यह पदार्थ त्वचा और आंखों में जमने लगता है, और दिखाई देता है पीला रंग। आमतौर पर यह पीलिया 7 से 10 दिनों में अपने आप ठीक हो जाता है।
कैसे पहचानें सामान्य पीलिया को?
आंखों का सफेद भाग और चेहरे से शुरू होकर शरीर पर हल्का पीलापन। बच्चा सामान्य रूप से दूध पीता है। पेशाब व मल नियमित आता है। बच्चा सुस्त नहीं है। अगर ये लक्षण हैं, तो घबराने की जरूरत नहीं। कुछ मामलों में नवजात में पीलिया सामान्य नहीं होता और विशेष चिकित्सा की आवश्यकता होती है। इसे ‘रोगात्मक’ या ‘पैथोलॉजिकल’ पीलिया कहा जाता है।
ये लक्षण हैं गंभीरता का संकेत
जन्म के पहले 24 घंटे में ही पीलिया दिख जाए। पीलिया बहुत तेजी से बढ़े या दो हफ्तों से ज्यादा समय तक बना रहे। बच्चा बहुत सुस्त हो, दूध पीना बंद कर दे। बिलीरुबिन का स्तर बहुत अधिक हो।
गंभीर पीलिया के संभावित कारण
रक्त समूह असंगति (जैसे माँ और बच्चे का ब्लड ग्रुप अलग होना), इनफेक्शन, जन्मजात लिवर या एंजाइम की खराबी, जी6पीडी एंजाइम की कमी, थैलेसीमिया या अन्य रक्त संबंधी विकार
कैसे होता है पीलिया का निदान?
डॉक्टर इन जांचों से स्थिति की गंभीरता तय करते हैं, शारीरिक जांच (त्वचा और आंखों की रंगत), ब्लड टेस्ट (बिलीरुबिन स्तर, हीमोग्लोबिन, रक्त समूह), लिवर फंक्शन टेस्ट, त्वचा पर लगाया जाने वाला ट्रांसक्यूटेनियस बिलीरुबिन मीटर व दर्द रहित तरीका।
हल्का हो या गंभीर, समाधान संभव है
सामान्य पीलिया के लिए, हर 2-3 घंटे में मां का दूध पिलाना, सुबह की हल्की धूप में कुछ समय तक रखना (सीधी तेज धूप से बचें), गंभीर मामलों में, फोटोथैरेपी (नीली रोशनी से इलाज), बिलीरुबिन को पानी में घुलनशील बनाकर शरीर से बाहर निकालता है, ब्लड एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन। यदि बिलीरुबिन का स्तर खतरनाक रूप से अधिक हो जाए।
माता-पिता के लिए जरूरी सलाह
नवजात में हल्का पीलापन सामान्य है, लेकिन सतर्क रहना आवश्यक है। यदि जन्म के 24 घंटे के भीतर पीलिया दिखाई दे, बच्चा सुस्त हो, दूध न पी रहा हो या पेशाब-मल कम हो रहा हो, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। शिशु की जन्म के बाद जांच अवश्य करवाएं। मां का दूध नियमित रूप से पिलाएं, यह प्राकृतिक उपचार जैसा है। डॉक्टर द्वारा बताए गए ब्लड टेस्ट और इलाज को नजरअंदाज न करें। घबराएं नहीं, समझें और संभलें। नवजात में पीलिया आम बात है, लेकिन यह गंभीर रूप भी ले सकता है। माता-पिता के लिए सबसे जरूरी है समय पर पहचानना, डॉक्टर से सलाह लेना और उपचार में देरी न करना। थोड़ी सी जानकारी और सावधानी से आप अपने शिशु को स्वस्थ जीवन की ओर ले जा सकते हैं।
-लेखक जाने-माने सीनियर सर्जन और आईएमए राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष हैं



