




सुचेता जैन.
पहलगाम हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव ने एक बार फिर देश को संवेदनशील मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। सीमा पर हालात गंभीर हैं, हमारे सैनिक चौबीसों घंटे देश की रक्षा में लगे हैं, लेकिन देश के अंदर की तस्वीर कुछ और ही बयां कर रही है।
आज का युवा वर्ग डिजिटल युग में जी रहा है। सोशल मीडिया उसके जीवन का हिस्सा बन चुका है। परंतु जब भी देश में संकट की घड़ी आती है, तो यही माध्यम अफवाहों और भ्रामक सूचनाओं का ज़रिया बन जाता है। बिना तथ्यों की पुष्टि किए खबरें शेयर करना, युद्ध का समर्थन करना या नफरत फैलाना, यह सब दर्शाता है कि कहीं न कहीं युवा वर्ग अपनी असली भूमिका से भटक गया है।
देशभक्ति का मतलब सिर्फ स्टेटस अपडेट नहीं, बल्कि ज़मीन पर उतरकर कुछ करना भी होता है। युद्ध जैसे हालातों में देश को ज़रूरत होती है जागरूक नागरिकों की, खासकर युवाओं की, जो आगे आकर नेतृत्व कर सकें। दुर्भाग्य से हमने देखा कि बहुत से युवा इन हालातों को समझने के बजाय केवल ऑनलाइन प्रतिक्रियाएं देने तक सीमित रह गए हैं। न तो वे सच्चाई जानने की कोशिश करते हैं और न ही खुद से सवाल करते हैं कि क्या वे देश के लिए वाकई कुछ कर रहे हैं।
वहीं, मीडिया जो लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है, उसने भी इन हालातों में अपनी जिम्मेदारी निभाने के बजाय टीआरपी की दौड़ में खुद को मज़ाक बना लिया। टीवी पर डिबेट्स में आग उगली जा रही थी, रिपोर्टिंग से ज़्यादा नाटकीय प्रस्तुतियाँ दी जा रही थीं। जब मीडिया ही लोगों को गुमराह करेगा, तो देश में शांति और समझदारी कैसे बनी रहेगी?
जब माइक्रोफोन हाथ में हो, तो जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। ऐसे समय में युवाओं को खुद को उदाहरण बनाना होगा। उन्हें यह तय करना होगा कि वे भीड़ का हिस्सा बनेंगे या बदलाव के वाहक बनेंगे। सोशल मीडिया पर बहस करने की बजाय, वे ज़मीनी स्तर पर योगदान दे सकते हैं, रक्तदान करें, राहत सामग्री इकट्ठा करें, शांति और एकता का संदेश फैलाएं, या फिर अपने आसपास फैली गलत सूचनाओं को रोकें।
युवाओं की ऊर्जा अगर सही दिशा में लगे, तो हर संकट अवसर बन सकता है। जरूरत है कि आज का युवा केवल तकनीकी रूप से नहीं, भावनात्मक और सामाजिक रूप से भी परिपक्व बने। उसे समझना होगा कि देशभक्ति दिखाने का सबसे बड़ा मंच युद्ध नहीं, बल्कि नागरिक जिम्मेदारियों का पालन करना है। आज का समय युवाओं के लिए परीक्षा की घड़ी है। यह तय करने का समय है कि वे केवल सोशल मीडिया वॉरियर्स बनकर रहेंगे या असली बदलाव के वाहक बनेंगे। जब हर युवा अपने भीतर यह सवाल उठाएगा कि ‘मैं क्या कर सकता हूं?’ तभी देश वास्तव में मजबूत और एकजुट होगा।




