राजे या किसी और को मिलेगा ‘राज’

गोपाल झा. 

राजस्थान में राज बदला है, रिवाज नहीं। भाजपा के हिस्से 115 विधायक आए हैं और कांग्रेस को 69 सीटें मिली हैं। यानी जनता ने स्पष्ट बहुमत वाली सरकार को चुना है तो सरकार पर अंकुश रखने वाला मजबूत विपक्ष भी। स्वस्थ लोकतंत्र का यही पैमाना है। 
 चुनाव परिणाम आने के बाद सबकी नजरें टिकी हैं भावी मुख्यमंत्री को लेकर। सवाल वही कि क्या वसुंधराराजे या फिर किसी और को मिलेगा राजस्थान का राज ? देखा जाए तो इस सवाल का जवाब सिर्फ भाजपा आलाकमान ही दे सकता है। मोदी-शाह की जोड़ी तय करेगी राजस्थान का अगला मुख्यमंत्री। भले राजस्थान के दर्जन भर नेता सीएम कुर्सी की रेस में हों लेकिन अंततः होगा वही जो मोदी-शाह ने तय किया है। 

 पांच महीने बाद लोकसभा चुनाव हैं। पीएम मोदी को सीएम के लिए ऐसा चेहरा चाहिए जो लोकसभा की सभी 25 सीटें भाजपा की झोली में दिलाने की हैसियत रखता हो। इसमें सबसे पहला नाम है वसुंधराराजे का। वे भाजपा कार्यकर्ताओं की स्वभाविक पसंद हैं। लोकप्रियता के पैमाने पर राजे सब पर भारी हैं। दो बार सीएम रहने का अनुभव है। राज्य के पूरे 200 विधानसभा क्षेत्रों में उनकी पकड़ है। लेकिन मोदी-शाह के साथ अनबन इसमें बाधा है। यही वजह है कि उन्हें सीएम फेस के तौर पर नहीं रखा गया। जाहिर है जब चुनाव से पहले उन्हें सीएम फेस बनाने से गुरेज किया गया तो अब स्पष्ट बहुमत आने पर उन्हें पार्टी आगे करेगी, संशय है। यह दीगर बात है कि राजे को विश्वास में लिए बगैर किसी को सीएम का ताज सौंपना भी इतना आसान नहीं। खासकर तब, जब राजे के पास 50 के करीब विधायक हों। मतलब राजे को विश्वास में लेकर ही किसी रणनीति को अमली जामा पहनाया जा सकता है। 

 लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला का नाम भी सामने आ रहा है। बिड़ला मोदी के विश्वसनीय हैं। लोकसभा स्पीकर के तौर पर वे मोदी का दिल जीत चुके हैं। माना जा रहा है कि चुनाव से पहले वे ओम बिड़ला को राजस्थान सौंपने का मन बना रहे हैं। 
 केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल को भाजपा दलित नेता के तौर पर पेश करती रही है। अर्जुनराम कुशल प्रशासक माने जाते हैं। वे राजनीति की जमीनी हकीकत से भलीभांति परिचित हैं। भाजपा चाहेगी राजस्थान में दलित नेता को सीएम की कुर्सी सौंपकर दलित वोट पर पकड़ मजबूत करे। 
 गजेंद्र सिंह शेखावत आरएसएस पृष्ठभूमि के हैं। पार्टी ने पहली बार उन्हें वैभव गहलोत के सामने चुनाव लड़ाया और वे जीत गए। केंद्रीय मंत्री हैं।
 बाबा बालकनाथ राजस्थान में ‘फायर ब्रिगेड’ नेता के तौर पर लोकप्रिय होते जा रहे हैं। हनुमानगढ़ में पले-बढ़े बालकनाथ अलवर सांसद बने। हिंदुत्व का चेहरा बनकर उभरे है। भाजपा सियासी फायदे के लिए कट्टर हिंदुत्व को प्रमोट करती है, यही वजह है बालकनाथ सीएम रेस में आगे बताए जा रहे हैं ताकि लोकसभा चुनाव में वोटों का धु्रवीकरण हो सके। 
 ओम माथुर संघ पृष्ठभूमि से आए नेताओं में कुशल संगठक के तौर पर जाने जाते हैं। वे मोदी के करीबी नेताओं में शुमार हैं। बताया जाता है कि गुजरात व यूपी जैसे राज्यों में बतौर प्रभारी माथुर ने बेहतरीन प्रदर्शन किया लेकिन अब तक उन्हें उचित ‘पुरस्कार’ नहीं मिला है। चर्चा है, मोदी माथुर को कुर्सी सौंपकर उन्हें उचित पुरस्कार दें और वसुंधराराजे को सबक सिखाएं। काबिलेगौर है, माथुर के साथ राजे का रिश्ता तल्ख रहा है।
दीया कुमारी, डॉ. किरोड़ीलाल मीणा, घनश्याम तिवाड़ी सरीखे नेताओं के नाम भी सीएम रेस में चल रहे हैं। दिलचस्प बात है कि किसी जाट नेता का नाम सीएम रेस में नहीं है। 
 संभव है भाजपा इस बार कुछ डिप्टी सीएम भी बनाए। लोकसभा चुनाव से पहले सभी वर्ग को साधने के लिए दो से तीन डिप्टी सीएम बनाए जा सकते हैं, ऐसी चर्चा है। इससे न सिर्फ जातिगत समीकरण के हिसाब से जनता तक संदेश पहुंचाने में कामयाबी मिलेगी बल्कि मुख्यमंत्री पद पर अंकुश भी लगाया जा सकता है। भाजपा का यूपी फार्मूला हमारे सामने है।
खैर।
 खबर है कि ओम माथुर की सुरक्षा बढ़ा दी गई है। बालकनाथ और गजेंद्र सिंह शेखावत को दिल्ली तलब कर लिया गया है। जाहिर है, इन चर्चाओं के मायने हैं। कुछ दिन सियासी अटकलें यूं ही चलेंगी, जनता का इन्हीं चर्चाओं से मनोरंजन भी होगा। लेकिन सीएम वही बनेगा जिसे मोदी-शाह का समर्थन हासिल होगा। विधायकों की पसंद-नापसंद मायने नहीं रखते। हां, सत्ता की उम्मीद खत्म होते देख वसुंधराराजे कोई ‘सियासी खेला’ कर दें तो हैरानी की बात नहीं।

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