भटनेर पोस्ट डिजिटल डेस्क. जयपुर.
बजट का सबको इंतजार रहता है लेकिन राज्य भर के लोगों में इस बजट को लेकर कुछ ज्यादा ही इंतजार है। बड़ा कारण है खुद सरकार की उत्सुकता। जिस तरह सरकार हॉर्डिंग्स और विज्ञापन के माध्यम से लोगों की उम्मीदें बढ़ा रही है, इससे लगता है 2023-24 का यह बजट अगले चुनाव को देखते हुए तैयार किया गया है। इसमें हर वर्ग को साधने की कवायद है। जानकारों की मानें तो अशोक गहलोत का बजट आम जन को समर्पित रहता है।
बतौर मुख्यमंत्री हर कार्यकाल में गहलोत आम जन के लिए राहत भरी योजनाएं लागू करते हैं। दरअसल, यह उनकी गांधीवादी सोच की परिणति है। दरअसल, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत 10 फरवरी को अपने तीसरे कार्यकाल का अंतिम बजट पेश करेंगे। मुख्यमंत्री होते हुए वित्त मंत्री के रूप में गहलोत के द्वारा पेश किए जाने वाला यह 10वां बजट होगा।
इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे 10 बजट पेश कर चुकी हैं। इस बार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के रिकॉर्ड की बराबरी कर लेंगे। प्रदेश की सियासत में वसुंधरा राजे ही ऐसी शख्सियत हैं जिन्होंने मुख्यमंत्री के साथ वित्त मंत्री की कमान संभालते हुए सदन में 10 बार बजट पेश किए थे। राजे के बाद अब अशोक गहलोत भी इसी श्रेणी में आ जाएंगे।
पत्रकार रामस्वरूप लामरोड़ कहते हैं, ‘प्रदेश में अर्थ के जरिए सरकार पर कंट्रोल करने का फार्मूला भी 20 साल पहले ही शुरू हुआ था। वर्ष 2003 में वसुंधरा राजे जब पहली बार मुख्यमंत्री बनी थी तब उन्होंने मुख्यमंत्री के पद के साथ वित्त विभाग संभालने की शुरूआत की थी। इसके बाद वर्ष 2008 में अशोक गहलोत जब दूसरी बार मुख्यमंत्री बने थे तब उन्होंने भी वित्त विभाग को अपने पास रखा था। पिछले दो दशक से यही परिपाटी चली आ रही है कि वित्त विभाग को मुख्यमंत्री के अपने पास ही रखते आए हैं। चूंकि सभी विभागों की वित्तीय स्वीकृतियों की फाइलें वित्त विभाग के पास ही आती है। यह अधिकार मुख्यमंत्री अपने पास रखना चाहए हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री द्वारा वित्त विभाग अपने पास रखा जाता है और वे ही बजट पेश करते हैं।
राजे दो तो गहलोत तीन बार सीएम
राज्य में गहलोत और राजे दो ही नेता ऐसे हैं जिनका राज पिछले ढाई दशक से कायम है। वसुंधरा राजे दो बार सीएम रह चुकी हैं जबकि गहलोत तीन बार मुख्यमंत्री बन चुके हैं। फरवरी में बजट पेश करने की परम्परा शुरू होने के बाद प्रदेश में हर पांच साल बाद सरकारें बदलती आई है। प्रदेश में सरकार बदलने के ठीक छह महीने बाद लोकसभा चुनाव होते हैं। इस कारण हर सरकार को अपने कार्यकाल में पहले साल में तीन माह का लेखानुदान लेना होता है। गहलोत और वसुंधरा ने पिछले बीस साल में दो-दो लेखानुदान पेश किए हैं।