राजीव गांधी 31 अक्टूबर, 1984 से 2 दिसंबर, 1989 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे थे। 20 अगस्त, 1944 को जन्मे और 21 मई, 1991 को दिवंगत हुए राजीव गांधी का बचपन और शिक्षा-दीक्षा जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी के घर-आंगन में हुई थी। अब तक के सभी प्रधानमंत्रियों में सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री थे और उनके निधन पर (47 वर्ष में) मेरे पड़ोस के बड़े-बड़े यहां कह रहे थे-भगवान, अच्छे लोगों को अपने पास जल्दी क्यों बुला लेते हैं। मिस्टर क्लीन और मिस्टर राइट के नाम से चर्चित राजीव गांधी मन और विचार से अनुभव तथा संघर्ष की सीढ़ियों चढ़कर प्रधानमंत्री नहीं बने थे, अपितु अपनी मां इंदिरा गांधी की आकस्मिक मौत पर अनिच्छा से प्रधानमंत्री बनाए गए थे, क्योंकि राजीव गांधी एक व्यावसायिक पायलट का पद छोड़कर आए थे, तब उनके मन में एक सपना था कि ‘भारत एक प्राचीन देश है, लेकिन युवा राष्ट्र है और मैं युवाओं को हर जगह पसंद करता हूं। मैं युवा हूं। मेरे भी सपने हैं। मैं एक मजबूत, स्वतंत्र, आत्मनिर्भर भारत का स्वप्न देखता हूं। मैं चाहता हूं कि मानव जाति की सेवा के कार्य में यह संसार के राष्ट्रों में सबसे प्रथम पंक्ति में खड़ा हो।‘‘
आने वाला समय और इतिहास राजीव गांधी का मूल्यांकन कैसे करेगा, यह तो आम आदमी ही तय करेगा, लेकिन हमें इतना जरूर लगता है कि राजीव गांधी कोई सत्तालोलुप नहीं थे और गंदी राजनीति के गंदे खेल उन्हें नहीं आते थे। इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद दिल्ली में हुए सिख विरोध दंगे, भोपाल गैस त्रासदी, बोफोर्स तोप घोटाला, शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का बदलाव, अयोध्या में रामलला मंदिर के ताले खुलवाने का फैसला और श्रीलंका में भारतीय शांति सेना भेजने के निर्णय ने जहां जनमानस में राजीव गांधी को बेहद विवादास्पद बनाया था, वहीं, 21वीं सदी के युवा भारत का सपना और पंचायतराज व्यवस्था के विकेंद्रीकरण और सशक्तीकरण की उनकी पहल ने उन्हें स्वतंत्र भारत के उल्लेख में मील का पत्थर भी साबित किया है। इतिहास निर्मम और निरपेक्ष होता है, इसलिए हम यह जानते हैं कि अनेक राजनीतिक असफलताओं के बावजूद राजीव गांधी कठिन समय के एक सरल और ईमानदार प्रधानमंत्री थे उनकी छवि आज भी भारत की आम जनता में एक निर्मल चरित्र की है।
राजीव गांधी ऐसे पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने सार्वजनिक रूप से यह सवाल उठाया था कि ग्रामीण भारत के विकास का जो एक रुपया दिल्ली से भेजा जाता है, उसका 15 पैसा ही गांवों तक पहुंचता है और 85 पैसा राज्य व्यवस्था बीच में हजम कर जाती है। राजीव गांधी ने ही कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में कांग्रेस के स्वर्ण जयंती समारोह (1985) के मुंबई अधिवेशन का उद्घाटन करते हुए सबसे पहले यह साहसिक बयान दिया था कि अब समय आ गया है कि कांग्रेस का पुनर्निर्माण किया जाए और कांग्रेस से भ्रष्ट दलाल और बिचौलियों को निकाल बाहर किया जाए। राजीव गांधी और उनकी पत्नी सोनिया गांधी ही स्वतंत्र भारत की सक्रिय राजनीति में दो ऐसे प्राणी हैं जो अनिच्छा से पावर पॉलिटिक्स के नायक बनाए गए हैं। यह भी सच ही है कि राजनीति में महात्मा गांधी के ‘अनासक्ति योग‘ की तरह इन दोनों ने ही बहुत कुछ किया है। प्रातः सत्ता व्यक्ति को भ्रष्ट कर देती है, लेकिन राजीव और सोनिया ने यह निःसंदेह साबित किया कि राजनीति का चरित्र, चेहरा और चाल जब तब पारदर्शी, संवेदनशील और जवाबदेह नहीं होगा, तब तक विकास की संस्कृति का और सभ्य समाज के निर्माण का सपना अधूरा ही रहेगा।
राजीव गांधी मेरी नजर में 21वीं सदी के भारत को तीन महत्वपूर्ण क्षेत्रों का चयन कर प्रगति के रास्ते पर ले जाना चाहते थे और गरीबों तथा मध्यम वर्ग को उसका आधार बनाना चाहते थे। तकनीकी और वैज्ञानिक विकास की उनकी ऐसी परिकल्पना थी कि मेरा भारत महान और 21वीं सदी का युग भारत की, आज भी उनकी प्रमुख पहचान है। मुझे याद है कि जवाहर लाल नेहरू, जहां धर्म निरपेक्ष, वैज्ञानिक समाजवाद पर बल देते थे, वहीं इंदिरा गांधी दृढ़ता और आत्म-विश्वास के साथ गरीबी हटाओ का संकल्प बुलंद करती थीं, लेकिन राजीव गांधी ने घनघोर उथल-पुथल के दौर (1984-89) में भी भारत निर्माण के लिए पेयजल, साक्षरता, टीकाकरण, श्वेत क्रांति और खाद्य तेल जैसे पांच तकनीकी मिशन बनाकर जिस दिशा और दृष्टि का आधारभूत ढांचा खड़ा किया, वह आज भी कांग्रेस की सामाजिक आर्थिक नीतियों का सार तत्व है। नेहरू का पंचशील और संजय गांधी का पांच सूत्री विकास एजेंडा भी राजीव गांधी के 21वीं शताब्दी की खोज में कहीं न कहीं बोलता है।
क्योंकि मैं जानता हूं कि भारत की राजनीति में 1885 से 1947 तक कांग्रेस का और फिर 1947 से आज तक नेहरू गांधी और राजीव गांधी का ही अभिन्न नाभि नाल का रिश्ता है, इसलिए मुझे भी यह लगता है कि 2010 की दुनिया में भारत जैसे गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण और भ्रष्टाचार से लड़ते हुए देश में राजीव गांधी जैसे युवा स्वप्न दृष्टा का स्मरण विशेष महत्व रखता है। कांग्रेस कार्यकर्ता से और कांग्रेस के सत्ता प्रतिष्ठानों से एक ईमानदार भारत निर्माण की आशा करता है, क्योंकि राजीव गांधी का निर्माण नेहरू और इंदिरा गांधी के त्याग बलिदान पर हुआ? और राजीव गांधी के बलिदान से ही सोनिया गांधी और राहुल गांधी का प्रादुर्भाव हुआ है। इसलिए कांग्रेस आज का गतिशील भारत 1947 का भारत नहीं है। सबसे प्रमुख बात यह कि जहां 2010 में कांग्रेस का पूरा फोकस 10 प्रतिशत आर्थिक विकास दर पाने पर है, वहां भारत का सामाजिक और राजनीतिक ताना-बाना, आतंकवाद, पृथकतावाद, भ्रष्टाचार और दीन-दलितों की पीड़ा से ही भरा हुआ है, जो शायद राजीव गांधी ने कभी नहीं सोचा था।
हम कई बार यह भी सोचते हैं कि भारत निर्माण का आदर्श नायक 21वीं सदी में कौन है हमें यही लगता कि 1947 में जो रास्ता राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने नए भारत के लिए बनाया था उस पर कहीं-कहीं कांग्रेस को चलना चाहिए और नेहरू, गांधी और राजीव भी उसी महात्मा गांधी के बताए रास्ते से ही कांग्रेस को बचा पाएंगे, क्योंकि भारत की कोई 450 से अधिक योजनाओं के नामधाम आज इन चार नायकों पर ही केंद्रित हैं, लेकिन देश या राज्य सरकार आज तक राजीव गांधी के पंचायतीराज कानून के तहत निर्धारित 29 कामों में से एक काम भी पंचायतों को नहीं सौंप रही है और महात्मा गांधी से लेकर राजीव गांधी तक के सभी सपने लाचार खड़े हैं। ऐसे में राजीव गांधी का 21वीं सदी के भारत का सपना कहां, कैसे और कब साकार होगा?
हमें इस पर विचार करना चाहिए, क्योंकि नई शिक्षा नीति, पर्यावरण, दलबदल कानून, मीडिया स्वतंत्रता और सार्वजनिक उद्योगों के सवाल तथा वर्ष 1990 में आए निजीकरण, उदारीकरण और भूमंडलीकरण के दौर में राजीव गांधी के बाद सपने भी चुनौतियों से भरे हुए हैं। ‘भारत रत्न‘ राजीव को याद करते हुए फिर लगता है कि कांग्रेस को आज सबसे पहले इतिहास को पढ़ना चाहिए और गांधी जैसी सहज और वैज्ञानिक दृष्टि की राजनीति को आगे बढ़ाना चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार हैं)