गहलोत जब पहली बार जोधपुर से सांसद बन कर दिल्ली पहुँचे थे तो किसी ने नहीं सोचा था कि छरहरे शरीर और छह फुट लम्बाई वाला तथा बहुत ही शान्त रहने और कम बोलने वाला यह शर्मिला शख्स इंदिरा गांधी जैसी कुशल नेत्री और उनकी नृशंस हत्या के बाद प्रचण्ड बहुमत से प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी और नरसिम्हा राव जैसे प्रतिभाशाली प्रधानमंत्रियों के मंत्रीमंडल में भी शामिल होगा।
केन्द्रीय मंत्री के रुप में गहलोत ने देश की राजधानी को जहाँ दिल्ली हाट एवं निफ़्ट जैसे संस्थान के तोहफ़े दिये वहीं सिविल एवीएशन और पर्यटन के क्षेत्र में भी उन्होंने कई नवाचार किये। साथ ही गहलोत ने अपने निर्वाचन क्षेत्र जोधपुर को देश का पहला ऐसा नगर बनवा दिया जिसमें आज हर प्रकार के बड़े राष्ट्रीय संस्थान मौजूद है तथा प्रदेश का यह दूसरा सबसे बड़ा शहर सड़क, रेल और वायुयान की बेहतर सुविधा से जुड़ा हुआ हैं।
राजस्थान के दिग्गज राजनेताओं दिवंगत मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखडियाँ एवं बरकतुल्लाह खान के बाद हरिदेव जोशी,नवल किशोर शर्मा, नाथूराम मिर्धा, राम निवास मिर्धा, कुँवर नटवर सिंह, शिवचरण माथुर,जगन्नाथ पहाड़िया, हीरालाल देवपुरा, गुलाब सिंह शक्तावत, भीखाभाई, सी.पी.जोशी, कमला बेनीवाल, डा.गिरिजा व्यास, शीशराम ओला, परसराम मदेरणा, राजेश पायलट, बलराम जाखड, बूटा सिंह आदि दिग्गज नेताओं से भरी राजस्थान कांग्रेस में जब वे पहली बार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बन कर आयें तो किसी को भी यह विश्वास नहीं हुआ था कि वे राजस्थान में अपनी धाक जमा पायेगें लेकिन जादूगर गहलोत ने अपना ऐसा जादू चला दिया कि वे एक बार …दो बार नहीं…तीसरी बार भी देश के भौगोलिक नक्शे पर सबसे बड़े प्रदेश राजस्थान के मुख्यमंत्री बने है ।
आज राजनीति के सशक्त और सक्षम खिलाड़ी माने जाने वाले अशोक गहलोत ने यह मुक़ाम अचानक ही हासिल नहीं किया हैं, बल्कि इसके लिए उन्होंने रात-दिन समर्पित भाव से अपनी पार्टी के सिद्धान्तों के प्रति प्रतिबद्ध रह कर कड़ी लगन एवं मेहनत और कर्मठता के साथ अपनी एक अलग ही हैसियत बनाई है।
राजनीति में एक क्षण भी गंवाना उनकी डिक्शनरी में नहीं लिखा हैं। अपने गृह नगर जोधपुर में चुनाव में पराजित होने के बावजूद वे निराश नही हुए और चुनाव परिणाम आने के तत्काल बाद अपने मतदाताओं को घर-घर धन्यवाद देने अकेले ही निकल पड़े थे और देखते ही देखते ऐसा कारवाँ बना कि वे फिर कभी जोधपुर से कोई चुनाव नहीं हारे। उस दिन रात को ही अपने निजी सहायकों से कहा कि चलो कार्यकर्ताओं, परिचितों एवं शुभ चिंतकों की सभी लिस्ट निकालो, हम नए सिरे से नई सूचियाँ बनाते है। उनके वर्षों उनके एक पुराने सहायक सोभागमल वर्मा बताते है कि गहलोत अलग ही मिट्टी के बने हैं। राजनीति उनके खून में रची बसी है, जिसके बूते वे रोज़ नई राजनीतिक बिसातें बिछाते हैं और उसमें प्रायः विजयी होते हैं।
राजनीति में लम्बी रेस का घोड़ा बनने की दिवंगत हरिदेव जोशी की नसीहत उनके ज़ेहन में इस तरह घर कर गई है कि उन्होंने आज अपने क़द को चरमोत्कर्ष तक पहुँचाया हैं। उनमें हर वक्त हर विषय को गहराई से समझने की जिज्ञासा देखीं जा सकती हैं। चाहें वह मिठाई का डिब्बा हो अथवा कोई मेडिसिन दवाई का नुस्खा ही क्यों नहीं होवें, वे उसकी तासीर को समझे बिना उसका उपयोग कभी नहीं करते। इसी तर्ज़ पर राजनीति में भी फूँक-फूँक कर कदम उठाने का अभ्यास करते-करते वे आज इसमें इतने पारंगत हो गये है कि लोग उन्हें ‘राजनीति का चाणक्य’ और ‘राजनीति का जादूगर’ कहने लगे हैं।
गहलोत अपनी ज़बरदस्त संगठन क्षमता के बलबूते पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के गृह प्रांत गुजरात में प्रतिष्ठा की एक चुनावी लड़ाई में अपने वरिष्ठ नेता और सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल को राज्य सभा का चुनाव जितवाने में सफल रहें थे। उन्होंने गुजरात के विधानसभा चुनावों में भी प्रभारी रहते हुए भाजपा की चूलें हिलाने में कोई कसर बाक़ी नहीं छोड़ी। कांग्रेस अध्यक्षों सोनिया गांधी, राहुल गांधी एवं कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेताओं ने उन्हें समय-समय पर जो भी जिम्मेदारियाँ सौंपी, वे सारी उन्होंने बहुत ही शिद्दत के साथ निभाई। फिर चाहें कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के साथ पंजाब का चुनाव जितवाने की चुनौती ही क्यों नहीं हो ? अथवा कर्नाटक में सरकार का गठन करवाना हो या दिल्ली एवं उत्तरप्रदेश सहित अन्य राज्यों में संगठन के कार्य आदि हर कसौटी पर उन्होंने अपने आपको साबित किया है। गहलोत के दूसरे मुख्यमंत्रित्व काल में जयपुर में आयोजित हुए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन में राहुल गाँधी को पार्टी का उपाध्यक्ष घोषित किया गया। इसी प्रकार उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मन मोहन सिंह और कांग्रेस के अन्य दिग्गज नेताओं को राजस्थान से राज्यसभा का सदस्य बनवा संसद में राजस्थान से एक भी कांग्रेसी सांसद नहीं होने के सूखापन को खत्म कराया था। बाद में उन्होंने पार्टी हाई कमान के निर्देश पर पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं को भी राज्य सभा में भेज कर अपनी राजनीतिक कुशलता का परिचय दिया। इससे पहले प्रदेश में मुख्यमंत्री की रेस और मंत्रीमंडल के गठन और संगठन की चुनौतियों को सुलझाने के साथ ही राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा को उन्होंने जिस ढंग से सफल बनाया, वह अपने आपमें असाधारण हैं। गहलोत आज सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, मल्लिकार्जुन खड़गे एवं प्रियंका गाँधी सहित कांग्रेस के सभी दिग्गज नेताओं के चहेते एवं प्रदेश के सर्वमान्य नेता हैं। वे संकट की हर घड़ी और परीक्षा की हर कसौटी में पार्टी नेताओं के साथ चट्टान की तरह अडिग खड़े दिखाई देते हैं।
जनमानस उन्हें ज़मीन से जुड़े नेता की नज़रों से देखता हैं। उन्हें “राजस्थान का गाँधी” एवं “राजस्थान का जननायक” जैसी कितनी हीं उपमाओं से सम्बोधित करता है। आज राजस्थान कांग्रेस में उनके क़द का कोई नेता नहीं हैं।
लोकसभा चुनावों में प्रदेश की सभी सीटों और मुख्यमंत्री रहते पाँच साल बाद विधान सभा चुनावों में हुई पिछलीं पराजयों ने गहलोत के विरोधियों को उनकी आलोचना का मौक़ा दे दिया। अपने गृह नगर जोधपुर से पहली बार चुनाव मैदान में उतरे गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत के पराजित होने से गहलोत अंदर तक वेदना ग्रस्त हुए थे,लेकिन उन्होंने उसे कभी अपने चेहरे पर प्रदर्शित नहीं होने दिया और धीर गम्भीर होकर चुनाव परिणामों को स्पोर्ट्समेन की भावना से लेते हुए लोक कल्याण की अपनी योजनाओं को अमलीजामा पहनाने के कार्य में जूट गए। मुक़्क़दर के सिकंदर गहलोत को इसमें अपनी पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं विशेष कर सोनिया गाँधी का पूरा समर्थन और आशीर्वाद मिला है।अपने मुख्यमंत्री के रूप में तीसरे कार्यकाल में गहलोत ने कोविड-19 कोरोना का शानदार प्रबन्धन,अपनी कई लोकप्रिय योजनाओं,राज्य कर्मचारियों के लिए पुरानी पेन्शन योजना, राइट टू हेल्थ, मुख्यमंत्री चिरंजीवी योजना में केस लेश इलाज और 25 लाख का बीमा,दस लाख का दुर्घटना बीमा,शहरी मनेरेगा में रोज़गार,पाँच सौ रु में गैस सिलेण्डर,100 यूनिट घरेलु बिजली और किसानों को 2000 यूनिट कृषि प्रोजनार्थ बिजली मुफ्त देने, महिलाओं को स्मार्ट फोन, प्रदेश में 19 नए जिलों और 3 नए संभागों का गठन का तुरुप का पत्ता तथा महंगाई राहत शिविरों के माध्यम से करोड़ों लोगों की तकलीफों को दूर करने आदि अनेक बजट घोषणाओं से इस वर्ष नवम्बर-दिसंबर में होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव से पहलें ऐसा वातावरण बना दिया है कि आज राज्य में हर पाँच वर्ष बाद भाजपा और कांग्रेस की बारी-बारी से सरकार बनने की परम्परा को तोड़ने का दावा भी किया जा रहा है।
वे अपनी पार्टी के गिने चुने नेताओं में से एक हैं जो कि हर मुद्दे पर नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को हर रोज़ सार्वजनिक रूप से घेरने का साहस प्रदर्शित करते है।समसामयिक विषयों पर बेबाक़ी एवं सटीक टिप्पणियाँ की वजह से वे बहुत चर्चित हो गए हैं। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर वे पिछले कई वर्षों से बोलते रहे है । चुनावी फण्ड को लेकर प्रायः उनके बयान राष्ट्रीय स्तर पर गम्भीर चिन्तन चर्चाओं का विषय बनते आयें है।
राजस्थान में पिछलें साढ़े चार वर्षों में हुए विधानसभा के लगभग सभी उप चुनावों के साथ ही और पंचायत निकाय चुनावों में भी गहलोत को भारी विजय मिलीं हैं।
दिल्ली के पार्टी की रेलियों और प्रदर्शनों की सफलता में भी गहलोत की रणनीतिक अहम भूमिका रहती हैं। हाई कमान की नज़रों में गहलोत हमेशा खरे साबित हुए है।गहलोत बहुत हाई साफ़गोई में विश्वास रखते है और हर सकारात्मक आलोचना को सरकार के लिए आई ऑपनर और कमियों को सुधारने का पैमाना मानते है। अपनी तीसरी पारी में गहलोत काफ़ी बदले हुए तेवर दिखाते हुए चीते की चाल से परिणाम दायक उपलब्धियों को पूरा करने में किसी प्रकार की कोताही बर्दाश्त नहीं करते हैं। वे अपनी सरकार के मंत्र जवाबदेही,पारदर्शी एवं संवेदनशील होने के सिद्धान्त पर नहीं चलने वाले अपने मंत्रियों पार्टी नेताओं और सरकारी कारिंदों को अपना स्पष्ट सन्देश दे कड़ी कार्यवाही से भी नहीं चूकते हैं। 72 वर्षीय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के दृढ़ इरादों से राजस्थान के विकास को नए पंख लग रहें हैं।