भटनेर पोस्ट न्यूज. जयपुर.
राज्य विधानसभा चुनाव से पूर्व बीजेपी और कांग्रेस आपसी कलह से जूझ रही है। दोनों ही पार्टियां नेतृत्व परिवर्तन को लेकर उलझी हुई है। ऐसे में राजधानी में पांच मार्च को होने वाला जाट महाकुंभ दोनों ही पार्टियों के लिए सिरदर्द साबित हो सकता है। माना जा रहा है कि जातिगत जनगणना और उसके हिसाब से सरकारी नौकरियों में आरक्षण तय करने का नया मुद्दा राजस्थान की राजनीति को चुनावी साल में प्रभावित करेगा। इसका समर्थन या विरोध करना किसी भी राजनीतिक दल के लिए आसान नहीं होगा। यह मुद्दा मूल रूप से बिहार से चलकर उत्तरप्रदेश होते हुए राजस्थान पहुंचा है। जाट महाकुंभ का मकसद राजस्थान में भी जातिगत जनगणना करवाना और ओबीसी ;अन्य पिछड़ा वर्गद्ध को उनकी जनसंख्या में भागीदारी के हिसाब से आरक्षण देने की मांग करना भी है। वर्तमान में राजस्थान में ओबीसी को सरकारी नौकरियों में 21 प्रतिशत आरक्षण हैए जिसे बढ़ाकर 27 प्रतिशत किए जाने की मांग की जा रही है। इसके लिए जातिगत जनगणना करवाकर हर जाति.समाज के अलग.अलग आंकड़े जुटाने की मांग तेजी से बढ़ रही है। फिलहाल देश में जातिगत जनगणना करवाने का कोई प्रावधान नहीं है। इस मांग से राजस्थान की आबादी में सीधे तौर पर 50.55 प्रतिशत लोग प्रभावित हो रहे हैं। प्रदेश की कांग्रेस सरकार के सामने इस मांग पर स्टैंड लेना टेढ़ी खीर साबित होगा। जाट महासभा के राजाराम मील कहते हैं कि संख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व हासिल करना लोकतांत्रिक मूल्यों के तहत आता है और हम यही मांग कर रहे हैं।