गोपाल झा.
मेरे जैसे खबरनवीस के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म पर प्रदर्शन आसान न था। ताउम्र ‘कलम घिसाई’ की है। टेक्नोलॉजी को समझने और सीखने की भूख भी नहीं। यही वजह है कि प्रिंट मीडिया में ही खुद का भविष्य टटोलता रहा।
खैर। भटनेर पोस्ट पाक्षिक अखबार, मासिक पत्रिका और वेब चैनल के साथ ही ‘ग्राम सेतु’ मैगजीन का विचार आया और उसे भी अमली जामा पहनाने में देरी न की।
कुछ वरिष्ठ पत्रकार जो निजी तौर पर मेरे शुभचिंतक हैं, अमूमन हनुमानगढ छोड़कर जयपुर शिफ्ट होने की सलाह देते रहते हैं। अप्पन भी ढीठ हो गए, सुन-सुनकर। एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देते हैं। लेकिन पिछले साल एक सीनियर की बात को गंभीरता से लिया और भटनेर पोस्ट को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाने का निर्णय किया। फरवरी आखिरी सप्ताह शुरुआत की ब्लॉगस्पॉट के साथ। मई आते-आते काफी संख्या में पाठक जुड़ गए तभी वरिष्ठ पत्रकार डॉ. हरिमोहन सारस्वत ‘रुंख’ साहब का सुझाव आया कि क्यों न इसे न्यूज पोर्टल में तब्दील किया जाए। उनसे हासिल तकनीकी ज्ञान को अमल में लाते हुए मई में ‘भटनेर पोस्ट डॉट कॉम’ की नींव रखी।
धारा के विपरीत चलने का स्वभाव ऐसा कि यह जानते हुए कि क्राइम न्यूज का बड़ा पाठक वर्ग है, हमने ‘भटनेर पोस्ट डॉट कॉम’ पर ‘क्राइम न्यूज’ को जगह नहीं देने का फैसला किया। यह सोचकर कि दुराचार, मारपीट व मर्डर आदि की खबरें निरर्थक हैं, इनको जानना कोई जरूरी नहीं। बावजूद इसके महज छह महीने में ‘भटनेर पोस्ट डॉट कॉम’ के पाठकों की संख्या 12.50 लाख पार कर गई। सच पूछिए तो मुझे इसकी क्षमता का अनुमान नहीं था। खबर अपलोड होते ही पाठकों की प्रतिक्रियाएं विभोर करने वाली होती हैं। आनंद की अनुभूति होने लगी है।
बिना किसी बड़ी टीम और सीमित संसाधन से मिली यह सफलता अभिभूत करने वाली है। पाठकों की बढ़ती तादाद के साथ ही बढ़ती जिम्मेदारियों का अहसास हो रहा है। सैकड़ों-हजारों न्यूज पोर्टल के बीच ‘सबसे पहले’ खबर देने की प्रतिस्पर्द्धा है। अप्पन इस पर ध्यान नहीं देते। तथ्य के बगैर खबर देने की कोई जल्दबाजी नहीं। पाठकों को भी सब्र है, यह निजी तौर पर संतोष की बात है।
बहरहाल, सभी प्रबुद्ध पाठकों का दिल से आभार। अपना भरोसा बनाए रखें। आने वाले समय में हम और बेहतर करने की कोशिश करेंगे। बस, आपका साथ बना रहे।